जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
आलमे-इंसानियत की कोई भी जंग उठाकर देख लीजिए और उसके असबाब तलाशिए तो आख़िर में वाहिद सबब ताक़त का जुनून ही नज़र आएगा और इसमें अगर अना की दीवानगी भी शामिल कर ली जाए तो मुआमला और ख़तरनाक हो जाता है।
आलमे-इंसानियत की कोई भी जंग उठाकर देख लीजिए और उसके असबाब तलाशिए तो आख़िर में वाहिद सबब ताक़त का जुनून ही नज़र आएगा और इसमें अगर अना की दीवानगी भी शामिल कर ली जाए तो मुआमला और ख़तरनाक हो जाता है।
یہ دیارِ ادب میں خوش نصیبی کی اعلا مثال ہے کہ فراز صاحب پشاور میں پلے بڑھے،ادبی اٹھان کی خوش بختی ملی۔۔۔ مجھے بھی اس شہرِ ہفت زبان میں جنم لینے، ابتدائی تعلیم حاصل کرنے اور ان گلیوں میں سانس لینے کے موسم ملے ۔۔۔ آج بھی پشاور کے قہوہ خانوں، ادبی حجروں اور شہر کی قدیم گلیوں میں فراز صاحب کے نقشِ قدم اور ان کے شہرِ ذات کی خوشبو محسوس ہوتی ہے ۔
आपने सबने ये जुमला ख़ूब सुना होगा कि फ़लाँ ग़ज़ल फ़लाँ ग़ज़ल की ज़मीन पर है। ग़ज़ल की ज़मीन से मुराद ग़ज़ल का ढाँचा है या’नी ग़ज़ल की बह’र, क़ाफ़िया और रदीफ़। मतलब ग़ज़ल की ज़मीन क्या है, ये उसके मतले से तय हो जाता है।
फ़राज़ रिहाई के बाद ऑफ़िस में बैठे थे कि फ़ोन की घंटी बजने लगी। उधर से आवाज़ आई, “वज़ीर-ए-आज़म आपसे बात करना चाहते हैं। भुट्टो फ़ोन पर आते ही बोले, ”फ़राज़ दिस इज़ मी, दिस टाइम आई सेवड योर लाईफ़। दे वांट टू ट्राई यू।”
वक़्त के साथ साथ चीज़ों के पैमाने भी बदलते रहते हैं। इन बदलावों के पीछे ज़रूरत और हालात की तब्दीलीयां कारफ़रमा होती हैं। परिवर्तन समय का विशेष गुण है और इस विशेषता से स्वयं समय भी अलग नहीं रहा है। अतः समय के साथ साथ समय नापने के पैमानों में भी बदलाव आता रहा है। समय को नापने की इंसान को सबसे पहले कब ज़रूरत पड़ी इस बारे में विश्वास से कुछ नहीं कहा जा सकता।
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