Tag : Ghazal

Blog on Faiz Ahmad Faiz

जब फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को इंग्लिश के पर्चे में 150 में से 165 नंबर मिले

थर्ड ईयर के इम्तिहान के बाद जब तालिब-ए-इल्म अपनी अपनी कापियाँ देख रहे थे तो फ़ैज़ की कॉपी पर 165 नंबर दर्ज थे। कोई हैरान हुए बग़ैर नहीं रह सका क्योंकि इम्तिहान सिर्फ़ 150 नंबरों का था।

Jagjit Singh Blog

जगजीत सिंह: ग़ालिब की आत्मा की तलाश में

जगजीत सिंह का नाम ज़हन में आते ही चेहरे पर आज भी मुस्कुराहट आ जाती है। जगजीत सिंह पिछली सदी की नब्बे वाली दहाई में जवान होती नस्ल के नौस्टेलजिया का एक अहम किरदार है। वो पीढ़ी जिस तरह अपने बचपन में कार्टूनिस्ट प्राण के किरदारों की नई काॅमिक्स की बेतहाशा राह तका करती थी, ठीक उसी शिद्दत से जगजीत सिंह के नई कैसेट्स उस जवान होती पीढ़ी को मुंतज़िर रखते थे।

Ghazal

ग़ज़ल में मिसरे का टकरा जाना

आपने सबने ये जुमला ख़ूब सुना होगा कि फ़लाँ ग़ज़ल फ़लाँ ग़ज़ल की ज़मीन पर है। ग़ज़ल की ज़मीन से मुराद ग़ज़ल का ढाँचा है या’नी ग़ज़ल की बह’र, क़ाफ़िया और रदीफ़। मतलब ग़ज़ल की ज़मीन क्या है, ये उसके मतले से तय हो जाता है।

Ghazal-aur-Daccan

ग़ज़ल और दक्कन

आमतौर पर कहा जाता है, कि ग़ज़ल की इब्तदा दिल्ली से हुई। हो सकता है, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है, कि ग़ज़ल की शुरुआत दक्कन से हुई। 17 वीं सदी से पहले उर्दू शाइरी गुजरात, दिल्ली, दक्कन हर जगह हो रही थी लेकिन कहीं ग़ज़ल मौजूद नहीं थी। आम- तौर पर मसनवी लिखने का रिवाज था। मसनवी के बा’द ग़ज़ल की शुरुआत ख़ास- तौर पर दक्कन के शाइर ‘क़ुली क़ुतुब शाह’ ने की। क़ुली क़ुतुब शाह के अलावा ‘वली मोहम्मद वली’, ‘क़ाज़ी महमूद बेहरी’ और ‘फ़ज़लुर्रहमान’ भी अहम् नाम हैं जिन्होंने ग़ज़ल की भीगी ज़मीन को सर- सब्ज़ करने में ख़ास किरदार अदा किया।

Ghazal aur Nazm

ग़ज़ल बड़ी या नज़्म

नज़्म की बुनियादी शर्त होती है एक ही मौज़ूअ’ को बयान करना लेकिन क्या ग़ज़ल में ऐसा है? नहीं बिल्कुल नहीं। ग़ज़ल के तमाम अशआ’र अपने आप में मुख़्तलिफ़ मौज़ूअ’ पर होते हैं और क़ाबिल-ए-ग़ौर बात यह है कि ग़ज़ल का हर शे’र अपने आप में एक मुकम्मल नज़्म होता है या’नी कोई भी ग़ज़ल कम-अज़-कम पाँच मुख़्तलिफ़ नज़्मों का इज्तिमा’ है, तो फिर नज़्म बड़ी कैसे हुई?

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