Archives : September 2020
आज़ाद नज़्म में रदीफ़, क़ाफ़िए की कोई पाबन्दी नहीं होती, बावजूद इसके अगर कहीं कोई क़ाफ़िया मिल जाए तो उसे ऐब की नज़र से नहीं बल्कि हुस्न-ए-इज़ाफ़ी की नज़र से देखते हैं। सन 1944 के आस- पास मख़्दूम मोहिन्द्दीन के इलावा किसी भी तरक़्क़ी-पसन्द नज़्म-निगार ने आज़ाद शाएरी शुरूअ नहीं की थी।
सन् 2009 में आई फ़िल्म ‘वेकअप सिड’ के गीतों की लोकप्रियता असंदिग्ध है। ख़ासतौर पर ‘गूंजा सा है कोई इकतारा’ की। जिंदगी के छोटे-छोटे पलों, ख़यालों में खोई कोंकणा सेन शर्मा, हवाओं और समुद्र की लहरों के बीच इसका सुंदर फ़िल्मांकन लोगों को कितना पसंद आया इसे यूट्यूब पर इसके व्यूज़ और कमेंट में देखा जा सकता है। कविता सेठ की ख़ूबसूरत आवाज़ सीधे दिल में उतर जाती है।
By Dinesh Shrinet
September 27, 2020
वैसे तो हर शख़्स को अपनी जा-ए-पैदाइश या वतन से मुहब्ब्बत होती ही है और वक़्तन फ़-वक़तन वो उसकी ज़ुबान से ज़ाहिर हो ही जाती है, लेकिन जब मुहब्बत करने वाला शख़्स शेरो अदब से ताल्लुक़ रखता हो तब क्या ही कहने। अलग़रज़ जहाँ जहाँ उर्दू पनपी और परवान चढ़ी उन अक्सर जगहों का नाम… continue reading
By Ateeb Quadri
September 25, 2020
शायरों के ख़यालात हर मुआमले में एक अनोखापन लिए हुए होते हैं, या यूँ कहिए कि उन्हें बयाँ करने का भी उनका एक अलग अंदाज़ होता है, ज़ाहिर है शायरों के तअल्लुक़ात भी जुदा होते हैं या कम अज़ कम अलाहिदा नज़रिए से देखे जाने का या बयान किये जाने का शरफ़ पाते हैं। अब… continue reading
By Priyamvada Singh
September 23, 2020
तलफ़्फ़ुज़ किसी भी ज़ुबान का रस है जो कान में तो टपकता ही है, इमला की शक्ल में आंख से देखा भी जाता है। देखिये – ‘नाजुकी’ उसके लब की क्या कहिए’ ख़ुदाए-सुख़न ‘मीर’ का यह ला-ज़वाल मिसरा एक बिंदी की ग़ैर-मौजूदगी के सबब आंख में तीर की तरह चुभा और उसे लहू-लहू कर गया।… continue reading
By Zia Zameer
September 17, 2020