Archives : March 2021

इन दास्तानों में हमें हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत मिलती है

नस्र के लिहाज़ से उर्दू अदब की क़दीम-तर सिन्फ़ दास्तान को कहा गया है। उर्दू अदब का नहवी जुज़्व बुनियादी तौर पर नामी महाकावी कहानियों की क़दीम- तर शक्ल तक ही महदूद था जिसे दास्तान कहा जाता था। इन लम्बी कहानियों के पेचीदा प्लॉट तिलिस्म, जादुई और दीगर हैरत-अंगेज़ मख़्लूक़ और वाक़िआत से लबरेज़ होते थे।

रंगों के उर्दू नाम जो हम भूलते जा रहे हैं

अफ़सोस हमें एहसास नहीं कि हमारे हाँ रंगों के क़दीम और ख़ूबसूरत नाम बड़ी तेज़ी से मतरूक हो रहे हैं। कल उन्हें कौन पहचानेगा। हमने अपने लफ़्ज़ खज़ाने पर लात मारी सो मारी, अपनी धरती से फूटने वाली धनक पर भी ख़ाक डाल दी।

हम अपनी कल्पना के सहारे वो सब देखते हैं जो खुली आँखों से नहीं देख सकते

यक़ीन और गुमान दोनों में एक बात मुश्तरक है कि दोनों हमारे ज़ेहन में एक तस्वीर बनाते हैं, और फ़र्क़ ये है कि यक़ीन एक ही तस्वीर बनाता है मगर गुमान की कोई हद नहीं। गुमान की तस्वीरों में यक़ीन की तस्वीर भी हो सकती है मगर यक़ीन की तस्वीर बनती है तो गुमनाम की सारी तस्वीरें मिट जाती हैं।

#QissaKahani: जब दाग़ बोले, “मियाँ बशीर आप शेर कहते नहीं, शेर जनते हैं”

‘क़िस्सा कहानी’ रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आप तक हर हफ़्ते उर्दू शायरों और अदीबों के जीवन और उनकी रचनाओं से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होंगे। इस सीरीज़ की पहली पेशकश में पढ़िए दाग़ देहलवी की शगुफ़्ता-मिज़ाजी का एक दिलचस्प क़िस्सा।

رنگوں کے اردو نام جو ہم بھولتے جا رہے ہیں

افسوس! ہمیں احساس نہیں کہ ہماری ہاں رنگوں کے قدیم اور خوبصورت نام بڑی تیزی سے متروک ہورہے ہیں۔ کل انھیں کون پہچانے گا۔ ہم نے اپنے لفظ خزانے پر لات ماری سو ماری، اپنی دھرتی سے پھوٹنے والی دھنک پر بھی خاک ڈال دی۔

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