Archives : August 2021

Ghazal-aur-Daccan

ग़ज़ल और दक्कन

आमतौर पर कहा जाता है, कि ग़ज़ल की इब्तदा दिल्ली से हुई। हो सकता है, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है, कि ग़ज़ल की शुरुआत दक्कन से हुई। 17 वीं सदी से पहले उर्दू शाइरी गुजरात, दिल्ली, दक्कन हर जगह हो रही थी लेकिन कहीं ग़ज़ल मौजूद नहीं थी। आम- तौर पर मसनवी लिखने का रिवाज था। मसनवी के बा’द ग़ज़ल की शुरुआत ख़ास- तौर पर दक्कन के शाइर ‘क़ुली क़ुतुब शाह’ ने की। क़ुली क़ुतुब शाह के अलावा ‘वली मोहम्मद वली’, ‘क़ाज़ी महमूद बेहरी’ और ‘फ़ज़लुर्रहमान’ भी अहम् नाम हैं जिन्होंने ग़ज़ल की भीगी ज़मीन को सर- सब्ज़ करने में ख़ास किरदार अदा किया।

Independence Day

स्वतंत्रता आंदोलन के तनाज़ुर में लिखी गईं बेहतरीन उर्दू कहानियां

स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम आपके लिए उर्दू में लिखी गईं चंद ऐसी कहानियां लेकर आए हैं जो अलग-अलग समय में आज़ादी की तहरीक के तनाज़ुर में लिखी गई हैं। इन कहानियों में आज़ादी से पहले के हिन्दुस्तानी समाज की झलकियां भी हैं और आज़ाद देश के ख़्वाबों की तस्वीरें भी। साथ ही उन दुखों और उम्मीदों के क़िस्से भी जो देश की आज़ादी और विभाजन से वाबस्ता रहे।

जो उन्हें नहीं जानते उन्हें ज़रूर जानना चाहिए

ये बात सुनकर दुख होता है कि जिन लोगों को शायरी में दिलचस्पी नहीं है या फिर कम है वो शकील बदायुनी साहब को सिर्फ़ फ़िल्मी गानों के हवाले से ही जानते हैं। जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए शकील साहब एक बहुत बेहतरीन शायर भी थे। उनका तरन्नुम और अंदाज़ दूसरे शायरों से मुनफ़रिद था। बिला-शुबा ये बात कही जा सकती है कि अगर शकील साहब फ़िल्मी दुनिया के लिए गाने न लिखते तो भी उनकी शायरी में इतना दम था कि जो उन्हें मक़बूल बना सके और उन्होंने एक उम्र तक अपनी शायरी से मक़बूलियत हासिल भी की।

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राहत इंदौरी: ये सानेहा तो किसी दिन गुज़रने वाला था

राहत की चुभती हुई शायरी, शेर सुनाने के ड्रामाई अंदाज़ और मौके़-मौके़ पर उनकी तरफ़ से फेंके जाने वाले लतीफ़ों और जुमलेबाज़ी ने उन्हें एक दूसरे ही जहान का शायर बना दिया था। वो माईक पर आते ही मुशायरे की ख़ामोशी को दाद-ओ-तहसीन की गर्मी से ऐसा पिघलाते थे कि देर तक मुशायरा अपने मामूल पर नहीं रह पाता था।

Poems or Paintings? Select Designs Carved out of Words

Some of the finest exemplars of intriguing imageries of rain and aftermath are contained in our beloved Urdu poetry. Poets, classical and contemporary alike, have colored their couplets with words, masterfully. From Mirza Ghalib, painting the most abstract impressions, to Ahmad Mushtaq, brushing the simplest of everyday stills, this little collection offers some of the most inviting images drawn, with alphabets!

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