Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

Jigar Moradabadi

जिगर मुरादाबादी की शायरी हुस्न और मोहब्बत के इर्द गिर्द घूमती है

जिगर मुरादाबादी उन चन्द सोच बदलने वाले शायरों में शामिल हैं, जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी। उसे नए लहजे और नए रंग से चमकाया भी। जिगर साहिब ने उर्दू शायरी को और कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन जिगर साहब उर्दू शायरी का वो पहला नाम हैं जिन्हें किताब और स्टेज पर एक जैसी मक़बूलियत ही नहीं महबूबियत भी हासिल हुई।

urdu lafz

ये शब्द हमें कहाँ कहाँ ले जाते हैं

उर्दू में हालाँकि लफ़्ज़ के सौत-ओ-आहंग से ये मुआमला उतना वाज़ेह नहीं होता, हाँ रिवाज की वजह से हमारे ज़हन पर इस लफ़्ज़ के मनफ़ी या मुसबत असरात पहले से नक़्श होते हैं लेकिन फिर भी लफ़्ज़ का माद्दा क्या है उसका मसदर क्या है उसका मूल क्या है, यह बातें बहुत हद तक अर्थ को ज़ाहिर कर देती हैं।

Ghalib and April Fool, April Fool Shayari

“جب غالب کی غزل کے نام پر لوگوں کو اپریل فول بنایا گیا”

ریاست بھوپال اپنی تشکیل کے اولین دور سے ہی اہل علم و ادب کی قدردان رہی ہے خصوصاً نواب صدیق حسن خاں کا دوربھوپال کی علمی وجاہت کا انتہائی سنہرا دور تھا۔ قال اللہ اور قال رسول کے اسباق کے درمیان میر و مصحفی اور غالب و مومن کی شعری عشوہ طرازیوں کے رنگ بھی فضا میں بکھرے ہوئے تھے خصوصاً غالب کے قدردانوں کا ایک وسیع حلقہ یہاں موجود تھا۔یہی وجہ ہے یہاں غالب کی ابتدائی دور کا کلام اس وقت آگیا تھا جب وہ جوانی کی سرحدوں سے گزر رہے تھے ۔

Meena Kumari Blog

मीना कुमारी का जौन एलिया से भी एक रिश्ता था

1 अगस्त 1933 को बॉम्बे में पैदा हुई महजबीन बानो ने महजबीन बानो से मीना कुमारी होने तक ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’, ‘मेरे अपने’, ‘पाकीज़ा’, ‘दिल एक मन्दिर’, ‘फ़ुट पाथ’, ‘परिणीता’, ‘बैजू बावरा’, ‘काजल’ और ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ जैसी फ़िल्मों में बे- मिसाल अदाकारी करते हुए तमाम दुनिया में धड़कने वाले दिलों की जुम्बिश हो जाने का सवाब हासिल किया।

क्या हुआ जब एक बार होली और मुहर्रम एक ही महीने में पड़ गए

लखनऊ की होली के क्या कहने साहब! होली क्या है हिन्दुस्तान की कौमी यकजहती की आबरू है। जो ये मानते हैं कि होली सिर्फ़ हिंदुओं का त्योहार है वो होली के दिन पुराने लखनऊ के किसी भी मोहल्ले में जाकर देख लें,पहचानना मुश्किल हो जाएगा रंग में डूबा कौन सा चेहरा हिंदू है कौन सा मुसलमान।

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