Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

Momin Khan Momin Blog

#QissaKahani: हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन, जो हमेशा इश्क़ के बीमार रहे

ये उस वक़्त की बात है जब मोमिन की हिक्मत के चर्चे सुन कर लखनऊ की एक नामी-गिरामी तवाइफ़ जिसका नाम उम्मतुल फ़ातिमा था अपने इलाज के लिए मोमिन के पास दिल्ली चली आई थी। तवाइफ़ लखनऊ की थी तो शेर-ओ-अदब का ज़ौक़ भी रखती थी और शेर भी कहती थी। ‘साहिब’ उसका तख़ल्लुस था।लेकिन लोग उसे आम तौर पर ‘साहब जान’ के बजाय ‘साहिब जी’ कहा करते थे।

Amrita Pritam

Amrita Pritam

The Immortal Romantic

If one was to define Amrita Pritam’s journey in this world, one would simply say: “Love with Sahir, Marriage with Singh, Life with Imroz”.

Sher mein Ek Lafz Ka Kamaal

शेर में एक लफ़्ज़ का कमाल

आज के ज़माने मे ये हुनर यानी एक, दो लफ़्ज़ों से मैयारी शायरी करना बड़े मुस्तनद और तजरबे-कार शाइरों मे ही पाया जाता है। मै चन्द मिसालों की मदद से रेख़्ता के कारईन बिल-ख़ुसूस नये लिखने वालों तक इस हुनर की तरसील करना चाहता हूँ…

Ibn-e-Insha Blog

इब्न-ए-इंशा: जिन का काटा सोते में भी मुस्कुराता है

इब्न-ए-इंशा की कई ग़ज़लें ऐसी हैं जिन्हें किसी बड़े फ़नकार ने अपनी ख़ुश नवाई से दवाम बख़श दिया है। जगजीत सिंह की गाई हुई उनकी ग़ज़ल ‘कल चौदहवीं की रात थी शब-भर रहा चर्चा तिरा’ आज भी हर तबक़े में इंतिहाई मक़बूल है।

Urdu article

वो इकलौता लफ़्ज़ जिसका बटवारा अदालत में हुआ

तो क़िस्सा मुख़्तसर ये कि कुछ वक़्त ये दोनों यानी ‘ब-नाम’ और ‘वर्सेस’ इक अदालत में साथ रह लिए थे तो अदालत के हुक्म से एक के मानी दूसरे को दे दिये गये। बेचारा मूल-अर्थ जो की अस्ली हक़-दार था वो अदालत का मुंह तकता रह गया और उसकी जगह पर किसी और को बसा दिया गया।

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