Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

Gauhar Jaan Blog

گوہر جان : ایک عہد ساز آواز

گوہرجان کوہم ہندوستان کی پہلی ’انٹرنیشنل سٹار‘ بھی کہہ سکتے ہیں۔ ان کی شہرت ہندوستان سے باہر بھی موجود تھی۔ آسٹریا میں بننے والی ماچس کی ڈبیہ پران کی تصویرہوتی تھی۔ ڈبیہ پر’میڈ ان آسٹریا‘ لکھا ہوتا تھا اور وہ آ سٹریا کے علاوہ ہندوستان میں بھی فروخت ہوتی تھی۔

Qurratulain Hyder

उर्दू अदब का शाहकार : आग का दरिया

उर्दू के अज़ीम नावेल ‘आग का दरिया’ की मुसन्निफ़ा क़ुर्रतुलैन हैदर की पैदाइश 20 जनवरी 1927 को अलीगढ़ में हुई थी। सन 47 में तक़्सीम के ज़ेर-ए-असर वो पाकिस्तान चली गई थीं लेकिन जब सन 1959 में आग का दरिया शाए’ होता तो वो वापस हिन्दुस्तान लौट आईं।

Naseeruddin Shah Blog

कहते हैं कि नसीर का है अंदाज़-ए-बयाँ और

ग़ालिब सीरीयल के तअल्लुक़ से एक और दिलचस्प क़िस्सा है। नसीरुद्दीन शाह मुँह-फट, और ग़ुस्सैले मशहूर हैं। ज़बान पर अंग्रेज़ी की वो गाली जो एफ़ से शुरू होती है, वो भी चढ़ी हुई है। उनकी शरीक-ए-हयात रत्ना ने उनसे गुज़ारिश कि ख़ुदा के लिए अपनी ज़बान पर क़ाबू रखना क्योंकि तुम इंडस्ट्री के तीन सब से ज़ियादा मोहज़्ज़ब, शाइस्ता और शरीफ़ लोगों के साथ काम कर रहे हो।

भूपिंदर सिंह : ज़िन्दगी मेरे घर आना

जिनकी आवाज़ में थी शायरी की उदास करवटें

ढलती सुनसान दोपहरी में कोई बेकल-सी पुकार या शाम के गहराते अँधियारे में अभी-अभी जलाया गया गौरवान्वित दिया… कुछ ऐसी थी भूपिंदर सिंह की आवाज़। कैसी उजली और आत्मगौरव से दीप्त होती, घन के गरज सा भारीपन लिए और निचाट अकेलापन लिए आवाज़। अकेलापन भी कोई रोने-कलपने वाला नहीं बल्कि ठहर कर ख़ुद को देखने-परखने वाला। सत्तर के दशक के शहरों में जा कर संघर्ष करने वाले नौजवानों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी थी।

Hazrat-e-Ishq, हज़रत-ए-इश्क़

हज़रत-ए-इश्क़, जो उस्तादों के उस्ताद हैं

हिन्दुस्तानी तहज़ीब से वाक़िफ़ हर शख़्स ये बात जानता है कि कोई भी फ़न सीखने के लिए, इल्म हासिल करने के लिए पहले उसके लायक़ बनना ज़रूरी है, ये वो ज़मीन है जहाँ गुरुओं, उस्तादों, शिक्षकों का सम्मान करना शिक्षित होने की पहली सीढ़ी माना जाता है, ऐसे में उस्तादों का एहतराम करने की रवायत बन जाती है जो कई शेरों में झलकती है।

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