Tag : Hasrat Mohani

Ghazal-aur-Daccan

ग़ज़ल और दक्कन

आमतौर पर कहा जाता है, कि ग़ज़ल की इब्तदा दिल्ली से हुई। हो सकता है, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है, कि ग़ज़ल की शुरुआत दक्कन से हुई। 17 वीं सदी से पहले उर्दू शाइरी गुजरात, दिल्ली, दक्कन हर जगह हो रही थी लेकिन कहीं ग़ज़ल मौजूद नहीं थी। आम- तौर पर मसनवी लिखने का रिवाज था। मसनवी के बा’द ग़ज़ल की शुरुआत ख़ास- तौर पर दक्कन के शाइर ‘क़ुली क़ुतुब शाह’ ने की। क़ुली क़ुतुब शाह के अलावा ‘वली मोहम्मद वली’, ‘क़ाज़ी महमूद बेहरी’ और ‘फ़ज़लुर्रहमान’ भी अहम् नाम हैं जिन्होंने ग़ज़ल की भीगी ज़मीन को सर- सब्ज़ करने में ख़ास किरदार अदा किया।

उर्दू के बग़ैर पुरानी फ़िल्मों की कल्पना नहीं की जा सकती

बॉलीवुड ने उर्दू का हाथ एक तवील वक़्त से थाम रक्खा है। बिला-शुबा ये बात कही जा सकती है कि उर्दू बॉलीवुड की फ़िल्मों, नग़्मों, डायलॉग्स की ख़ूबसूरती में दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा करती आ रही है। शायद ही कोई ऐसी फ़िल्म, नग़्मा, डायलॉग हमारी ज़िंदगी से गुज़रा होगा जिस में आप को उर्दू का रंग कम दिखाई दिया हो, ज़ियादा असरात ज़ेहन-ओ-दिल पर उन्हीं फ़िल्मों, नग़्मों, डायलॉग्स ने किया जिस में उर्दू थी।

जो कृष्ण भक्त थे और मौलवी भी थे, और कामरेड भी

हसरत शायर तो थे ही ,संविधान सभा के सदस्य भी थे, जो यूनाइटेड प्रोविंस से चुने गए थे ,इस्लामी विद्वान,फ़लसफ़ी और कृष्ण-भक्त इनके बारे में कहा जाता है। हसरत जब भी हज की यात्रा करके लौटते थे तो सीधे मथुरा वृंदावन जाया करते थे। वो कहते थे जब तक मैं मथुरा न जाऊॅं मेरा हज किस काम का है उनके बारे में मशहूर है कि उन्होंने तेरह हज किए थे।

Hasrat Mohani

स्वतंत्रता आंदोलन: जब दुबले-पतले हसरत जेल में चक्की पीसने पर लगा दिए गए

आज़ाद मुलक के अपने ख़्वाब के लिए हसरत मोहानी ने बेशुमार मुसीबतें और मुश्किलें बर्दाश्त कीं, जिस्मानी यातनायें झेलीं और ज़िंदगी के कई बरस जेल में गुज़ारे। उनका दिया हुआ नारा ‘इन्क़िलाब ज़िंदाबाद’ अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष का प्रतीक बना। हसरत आज़ाद मुल्क में सविधान सभा के सदस्य भी रहे।

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