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Mir Taqi Mir

Meer aur Unke Shagird: The Ustad in Meer Taqi Meer

Teacher’s day is quite a reminder as to why we should never forget what our teachers did for us. The same can be said for Urdu poetry where the tradition of Ustad and Shagird is both a legacy and a legend. Each of our favorite poets, at some point in time, reached out to their Ustads for corrections and amendments in their works, it’s a kind of unwritten law, one that is seldom read these days.

Ghazal-aur-Daccan

ग़ज़ल और दक्कन

आमतौर पर कहा जाता है, कि ग़ज़ल की इब्तदा दिल्ली से हुई। हो सकता है, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है, कि ग़ज़ल की शुरुआत दक्कन से हुई। 17 वीं सदी से पहले उर्दू शाइरी गुजरात, दिल्ली, दक्कन हर जगह हो रही थी लेकिन कहीं ग़ज़ल मौजूद नहीं थी। आम- तौर पर मसनवी लिखने का रिवाज था। मसनवी के बा’द ग़ज़ल की शुरुआत ख़ास- तौर पर दक्कन के शाइर ‘क़ुली क़ुतुब शाह’ ने की। क़ुली क़ुतुब शाह के अलावा ‘वली मोहम्मद वली’, ‘क़ाज़ी महमूद बेहरी’ और ‘फ़ज़लुर्रहमान’ भी अहम् नाम हैं जिन्होंने ग़ज़ल की भीगी ज़मीन को सर- सब्ज़ करने में ख़ास किरदार अदा किया।

Waqt ke Paimane

वक़्त के पुराने पैमाने

वक़्त के साथ साथ चीज़ों के पैमाने भी बदलते रहते हैं। इन बदलावों के पीछे ज़रूरत और हालात की तब्दीलीयां कारफ़रमा होती हैं। परिवर्तन समय का विशेष गुण है और इस विशेषता से स्वयं समय भी अलग नहीं रहा है। अतः समय के साथ साथ समय नापने के पैमानों में भी बदलाव आता रहा है। समय को नापने की इंसान को सबसे पहले कब ज़रूरत पड़ी इस बारे में विश्वास से कुछ नहीं कहा जा सकता।

Nazeer Akbarabadi

नज़ीर अकबराबादी: देसी मिट्टी की ख़ुश्बू

वली मोहम्मद नाम के गुमनाम शाइर अवाम के गीत गा रहे थे। कभी ककड़ी खीरा बेचने वाले के लिए नज़्म लिख देते तो कभी लड्डू बेचने वाले के लिए इस से ये हुआ कि लोग इन्हें बाज़ारी शाइर कहने लगे। पूरा नाम शेख़ वली मोहम्मद था लेकिन नज़ीर अकबराबादी के नाम से शोहरत पायी । इनका जन्म दिल्ली में 1735 के आसपास शेख़ मुहम्मद फ़ारूक़ के घर हुआ।

Waqt, pal, paher

وقت کے پرانے پیمانے

وقت کے ساتھ ساتھ چیزوں کے پیمانے بھی بدلتے رہتے ہیں۔ ان تبدیلیوں کے پس پشت ضرورت اور حالات کی تبدیلیاں کارفرما ہوتی ہیں۔ تبدیلی وقت کا خاصہ ہے اور اس وصف سے خود وقت بھی مستثنیٰ نہیں رہا ہے۔چنانچہ وقت کے ساتھ ساتھ وقت ناپنے کے پیمانوں میں بھی بدلاؤ آتا رہا ہے۔ وقت کو ناپنے کی انسان کو سب سے پہلےکب ضرورت پڑی اس بارے میں وثوق سے کچھ نہیں کہا جاسکتا۔

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