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टैगोर, जम्हूरियत और आख़िरी नागरिक

जम्हूरियत को अगर सिर्फ़ वोट करने के हक़ से ता’बीर किया जाए तो उसका मतलब ये होगा कि मुल्क में अक्सरिय्यती ख़याल, वो सोच जिस के मानने वाले अक्सरिय्यत में हों उस सोच को ही ग़लबा मिलेगा। लेकिन इस का दूसरा पहलू क्या ये है कि बाक़ी तमाम ख़याल, बाक़ी तमाम लोग और तमाम फ़िक्र के लोगों के लिए कोई जगह नहीं?

आइये देखते हैं मुख़्तलिफ़ सभ्यताओं में बिल्ली का क्या किरदार था – 2

मोहिनी मीर तक़ी मीर की कई बिल्लियों में से एक बिल्ली थी जो उन्हें बेहद अज़ीज़ थी। मीर का ये रंग शायद लोगों को ज़रा अटपटा लगे, क्योंकि मीर को एक बड़े ही दर्द भरे शायर के तौर पर मशहूर किया गया है, इसकी वुजूहात भी हैं कि मीर की ज़िंदगी और उस वक़्त का माहौल मुश्किलों से भरा था लेकिन एक शाइर ज़िन्दगी को कैसे देखेगा ये उस पर है, वो चाहे तो अमावस की रात में भी तारों के झुरमुट से दिल को रौशन कर ले या चाँद के न होने से दिल में अंधेरा कर ले।

سفید پوش

سفید پوش اس شخص کو کہتے ہیں جو حقیقتاً کم مایہ لیکن وضع دار ہو اور عزت کی نگاہ سے دیکھا جاتا ہو۔ مجھے نہیں معلوم کہ اردو فارسی میں سفید پوشی کا محاورہ پہلی بار کب استعمال ہوا۔ لیکن میرا قیاس ہے کہ سفید پوش کے معنی یورپ سے مستعار ہیں۔

Turki ba Turki

ترکی بہ ترکی

ترک سلاطین اور مغلوں کے دور میں دہلی اور آگرہ والے ہندی بولتے تھے لیکن لکھنے پڑھنے کا کام فارسی میں ہوتا تھا۔ سرکاری زبان فارسی سہی، لیکن شاہی محل میں اور دوسرے مغل امراء کی حویلیوں میں بچوں کی پرورش ترک مامائیں کرتی تھیں اور انھیں ترکی زبان سکھائی جاتی تھی۔ کم از کم جہانگیر کے عہد تک تو ضرور ایسا تھا۔

दिलीप कुमार: एक ज़िन्दगी के भीतर कितनी ज़िन्दगियां…

दिलीप कुमार इकलौते अभिनेता थे कि जब कैमरे की तरफ़ पीठ होती थी तब भी वे अभिनय करते नजर आते थे। फ़िल्म ‘अमर’ में एक दृश्य में मधुबाला उनसे मुख़ातिब हैं और कहती हैं, “सूरत से तो आप भले आदमी मालूम होते हैं…” फ़्रेम में सिर्फ़ उनकी धुंधली सी बांह नज़र आती है मगर संवाद अदायगी के साथ वे जिस तरीक़े से अपनी बांह को झटके से पीछे करते हैं वह उनके संवाद “सीरत में भी कुछ ऐसा बुरा नहीं…” को और ज़ियादा असरदार बना देता है।

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