Tag : Urdu Article

Zabaan ke bhi pair hote hain-02

ज़बानें तो दरिया की तरह होती हैं, जो हर पल नए नए पानियों का जलवा दिखाती हैं

ज़बानें हमारे जैसे इंसानों की तरह नहीं होतीं। उनका आपस में कभी झगड़ा नहीं होता। फ़ारसी उर्दू के पास आती है, तो संस्कृत से अल्फ़ाज़ लेते हुए उर्दू को दे जाती है। उर्दू और हिन्दी के नज़्दीक अंग्रेज़ी आती है, तो वो कुछ अल्फ़ाज़ ले जा कर दुनिया भर में बाँट देती है। ये सिलसिला हज़ारों साल से चलता चला आ रहा है।

Maihar-1

मैहर : जहाँ अतीत मौजूदा वक़्त के साथ-साथ चलता है

मेरे लिए मैहर आना दरअसल मेरे बचपन के नास्टेल्जिया से जुड़ा था। बहुत साल पहले की बात है। तब मैं नौ बरस की उम्र में पिता के साथ उस पहाड़ की पथरीली ऊँची-नीची सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर तक पहुँचा था। माँ पीछे छूट गई थीं। ऊँचाई पर तेज हवा चल रही थी और मेरे कपड़े फड़फड़ा रहे थे। तब पिता के साथ मैंने ऊपर रेलिंग से झाँका था।

Urdu Script, Urdu Lipi

उर्दू लिपि के कुछ बारीक मसअले

किसी भी ज़बान को पूरी तरह से समझने के लिए, उसके एक-एक लफ़्ज़ के मआनी तक पहुँचने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है, कि हमें उस ज़बान की रस्मुल- ख़त या’नी लिपि (script) का इल्म होना चाहिए। जब तक हम कोई ज़बान अच्छी तरह पढ़ और लिख नहीं सकते, हम उस ज़बान से पूरी तरह वाक़िफ़ नहीं हो सकते।

Kya-Urdu-Khichdi-Zabaan-Hai

क्या उर्दू ‘खिचड़ी’ ज़बान है?

बहुत सी भाषाएँ शहरों और इलाक़ों के नाम से संबद्ध होती हैं जैसे सिंध से ‘सिंधी’, पंजाब से ‘पंजाबी’, बंगाल से ‘बंगाली’ आदि, बिल्कुल वैसे ही उर्दू भाषा का नाम भी शहर के नाम पर पड़ा है, यानी शाहजहान आबाद के नाम ‘उर्दू’ पर। इसका लश्कर से कोई सम्बंध नहीं है और न ही ये भाषा किसी छावनी में विकसित हुई।

Mirza Ghalib Film 1954

जब मंटो ने मिर्ज़ा ग़ालिब पर फ़िल्म बनाई और संवाद बेदी ने लिखा

1954 की “मिर्ज़ा ग़ालिब” उन गिने-चुने दरीचों में से है, जो अवाम को माज़ी में झाँकने का मौक़ा बख़्शती है। फ़िल्म के ख़ूबसूरत मुकालमे राजिंदर सिंह बेदी की क़लम से निकले हैं, जो ख़ुद एक मुमताज़ अदीब रहे हैं।

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