बात से बात चले, बकुल देव के साथ एक गुफ़्तगू!
इस सिलसिले के चलते अपने हमअस्रों को और क़रीब से जानने-समझने के मवाक़े तो मयस्सर आएंगे ही, साथ ही साथ गुफ़्तगू के दौरान उर्दू अदब और अदीबों के तख़्लीकी तर्ज़ो तरीक़ के नये पहलू भी सामने निकल कर आएंगे..
इस सिलसिले के चलते अपने हमअस्रों को और क़रीब से जानने-समझने के मवाक़े तो मयस्सर आएंगे ही, साथ ही साथ गुफ़्तगू के दौरान उर्दू अदब और अदीबों के तख़्लीकी तर्ज़ो तरीक़ के नये पहलू भी सामने निकल कर आएंगे..
ग़ालिब कौन है, अब हम उससे क्या बताएँ कि जो ग़ालिब ही से पूछ रहा हो कि ग़ालिब कौन है। बहुत ग़ौर करें तो इसी शे’र में ग़ालिब निराश हो कर ये कहते हुए भी नज़र आते हैं कि- ”वो हमसे पूछ रहे हैं कि ग़ालिब कौन है तो कोई हमीं को बतलाओ कि हम क्या बतलाएँ कि हम कौन हैं।
दीवान से मुराद किसी शाइर की किसी किताब में ग़ज़लों की ता’दात से नहीं होती। दीवान शाइर की उस किताब को कहते हैं, जिसमें बा-क़ाएदा किताब की पहली ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ अलिफ़ ‘अ’ (ا ) होता है और आख़िरी ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ बड़ी ‘ये’ (ے) होता है।
माया-नगरी मुंबई जैसे एक कोह-ए-निदा है, जो हर वक़्त आवाज़ देता रहता है और लोग-बाग बोरिया-बिस्तर बांधे जूक़ दर जूक़ इसकी तरफ़ भागे चले आते हैं। इस शहर के आकर्षण में समुंदर के अलावा दो और चीजों ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मीर अनीस को मर्सिया-निगारी का बादशाह कहा जाता है। उन्होंने मर्सिया-निगारी को उरूज बख़्शा। दुनिया भर में होने वाली मजलिसों में आज भी मीर अनीस के मरासी कसरत से पढ़े जाते हैं।
मीर अनीस जितने अज़ीम शायर थे उतने ही नाज़ुक-मिज़ाज और फ़क़ीर-सिफ़त इन्सान थे। वो रईसों और अमीरों की सोहबत में बैठना पसंद नहीं करते थे। इसका सुबूत उनके हैदराबाद के मुख़्तसर क़याम के दौरान भी नज़र आता है।
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