अदब फ़ारूक़ी साहब के लिए जीने और मरने का सवाल था
फ़ारूक़ी साहब की ज़िन्दगी एक मज़मून में नहीं समा सकती, उनका काम भी एक मज़मून में नहीं समा सकता। उन्होंने तनक़ीद लिखी और हर बार अपनी तनक़ीद से लोगों को चौंकाया। कुछ लोगों का मानना है कि वो तस्दीक़ के नहीं बल्कि तरदीद के नक़्क़ाद थे।