सहीह मानों में फ़ारूक़ी साहब एक इनसाइक्लोपीडिया की तरह थे
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी वो शख़्स थे जिनके मज़ाक़ में भी इल्म निहाँ होता था। ये मुबालग़ा नहीं होगा अगर ये कहा जाए कि फ़ारूक़ी साहब को सिर्फ़ 10 घंटे सुन कर आप उर्दू अदब के ग्रेडुएट हो सकते हैं।
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी वो शख़्स थे जिनके मज़ाक़ में भी इल्म निहाँ होता था। ये मुबालग़ा नहीं होगा अगर ये कहा जाए कि फ़ारूक़ी साहब को सिर्फ़ 10 घंटे सुन कर आप उर्दू अदब के ग्रेडुएट हो सकते हैं।
फ़ारूक़ी साहब की ज़िन्दगी एक मज़मून में नहीं समा सकती, उनका काम भी एक मज़मून में नहीं समा सकता। उन्होंने तनक़ीद लिखी और हर बार अपनी तनक़ीद से लोगों को चौंकाया। कुछ लोगों का मानना है कि वो तस्दीक़ के नहीं बल्कि तरदीद के नक़्क़ाद थे।
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ नाराज़ थे क्योंकि उनका कोई भी काम समय से नहीं शुरू हुआ। इफको उन्हें सात बजे से पहले पहुँचना था मगर वे पहुँचे रात नौ बजे। अंधेरे में कैमरे के फ्लैश चमक रहे थे। वे अपनी आँखों के आगे हाथ लगाते हुए चीखे, “बंद करो इसे…!
Two major voices of modern Urdu poetry would never be heard again.
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