Tag : Urdu Poets

Shakeel Badayuni

जब शकील बदायुनी सरकारी नौकरी छोड़ कर मुंबई में क़िस्मत आज़माने लगे

शकील का मर्तबा ब-तौर गीतकार जिस दर्जा बुलंद है, ब-तौर एक शाइर भी उनका मर्तबा कुछ कम नहीं है। पहले उनके शाइराना पहलू के हवाले से बात करते हैं। शकील की पैदाइश 3 अगस्त 1916 को बदायूँ में हुई थी। उनके वालिद जमील अहमद क़ादरी बम्बई की एक मस्जिद में इमामत करते थे, लिहाज़ा उनका ज़ियादा-तर वक़्त बदायूँ से बाहर गुज़रता था।

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इन शायरों ने या तो आत्महत्या की या जल्दी ही इस दुनिया से उठ गए

वाक़ई शाइर बना या बनाया नहीं जा सकता। शाइर या शाइरी को तराशना एक मुख़्तलिफ़ काम है। शाइर होना पैदाइशी हुनर है और ये किसी के हाथ में नहीं। शाइरी की मश्क़ आपके हाथ में है और रियाज़त के हाथ में है, कि वो आप पर असर कब करेगी।

Jigar Moradabadi

जिगर मुरादाबादी की शायरी हुस्न और मोहब्बत के इर्द गिर्द घूमती है

जिगर मुरादाबादी उन चन्द सोच बदलने वाले शायरों में शामिल हैं, जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी। उसे नए लहजे और नए रंग से चमकाया भी। जिगर साहिब ने उर्दू शायरी को और कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन जिगर साहब उर्दू शायरी का वो पहला नाम हैं जिन्हें किताब और स्टेज पर एक जैसी मक़बूलियत ही नहीं महबूबियत भी हासिल हुई।

Habib Jalib Blog

उन्होंने हमेशा पाकिस्तानी फ़ौजी तानाशाहों का खुले-आम विरोध किया

अवाम के दर्द को जितना क़रीब से उन्होंने देखा उसे महसूस किया और उसके बारे में लिखा ऐसा उस दौर में बहुत ही कम शायरों ने किया। लोगों ने उन्हें शायर-ए-अवाम का दर्जा भी दिया। वो उस वक़्त के सबसे ज़ियादा पढ़े जाने वाले और मक़बूल शायरों की फ़ेहरिस्त में सबसे आगे थे। हबीब जालिब साहब ने पाकिस्तान में हमेशा मार्शल लॉ की मुख़ालिफ़त की क्योंकि वो जानते थे कि इस ‘लॉ’ में किस तरह से एक आम इंसान के हुक़ूक़ तलफ़ किए जाते हैं। इस सिलसिले में उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ी और जेल भी जाना पड़ा।

#QissaKahani: जब दाग़ बोले, “मियाँ बशीर आप शेर कहते नहीं, शेर जनते हैं”

‘क़िस्सा कहानी’ रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आप तक हर हफ़्ते उर्दू शायरों और अदीबों के जीवन और उनकी रचनाओं से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होंगे। इस सीरीज़ की पहली पेशकश में पढ़िए दाग़ देहलवी की शगुफ़्ता-मिज़ाजी का एक दिलचस्प क़िस्सा।

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