मैं एक औरत-दुश्मन शायर रहा हूँ
हम मिर्ज़ा ग़ालिब की नसीहत पर अमल करते हुए भी अदब के मैदान में ख़ुद को बड़ा शायर बनाना चाहते थे कि ‘मिस्री की मक्खी बनो, शहद की मक्खी नहीं बनो’। मगर हमने ग़ौर नहीं किया कि ये जुमला किस तरह औरत दुश्मनी की रिवायत का बीज हमारे ज़हन में बो रहा है। हमें लगा कि अदब में बेहतरीन क़िस्म का शायर वही होता है, जो बदन की शायरी करता हो।