तमाम शह्र में मौज़ू ए गुफ़्तगू हम थे
राहत इंदौरी ने मुशाइरे को एक क़िस्म के परफ़ार्मेंस में बदल दिया.. और मुशाइरे के मंच को भी राहत इंदौरी से बड़ा परफ़ार्मर अब शायद ही नसीब हो। वे ऐसा जादू जगाते थे जिसको दोहराना किसी के भी लिये मुमकिन न था।
राहत इंदौरी ने मुशाइरे को एक क़िस्म के परफ़ार्मेंस में बदल दिया.. और मुशाइरे के मंच को भी राहत इंदौरी से बड़ा परफ़ार्मर अब शायद ही नसीब हो। वे ऐसा जादू जगाते थे जिसको दोहराना किसी के भी लिये मुमकिन न था।
میں نے اپنے ایک اُردو داں اور نکتہ سنج دوست سے پوچھا کہ غالب کون ہے؟ ان کا جواب تھا: ’سوال بظاہر سادہ، لیکن بہت گہرا ہے۔ سادہ اس لیے کہ لوگ اس پر ہنسیں گے کہ آپ کو یہ بھی نہیں معلوم کہ غالب کون ہے اور گہرا اس لیے کہ یہ تو غالب کو بھی نہیں معلوم تھا کہ غالب کون ہے؟
ترک سلاطین اور مغلوں کے دور میں دہلی اور آگرہ والے ہندی بولتے تھے لیکن لکھنے پڑھنے کا کام فارسی میں ہوتا تھا۔ سرکاری زبان فارسی سہی، لیکن شاہی محل میں اور دوسرے مغل امراء کی حویلیوں میں بچوں کی پرورش ترک مامائیں کرتی تھیں اور انھیں ترکی زبان سکھائی جاتی تھی۔ کم از کم جہانگیر کے عہد تک تو ضرور ایسا تھا۔
दिलीप कुमार इकलौते अभिनेता थे कि जब कैमरे की तरफ़ पीठ होती थी तब भी वे अभिनय करते नजर आते थे। फ़िल्म ‘अमर’ में एक दृश्य में मधुबाला उनसे मुख़ातिब हैं और कहती हैं, “सूरत से तो आप भले आदमी मालूम होते हैं…” फ़्रेम में सिर्फ़ उनकी धुंधली सी बांह नज़र आती है मगर संवाद अदायगी के साथ वे जिस तरीक़े से अपनी बांह को झटके से पीछे करते हैं वह उनके संवाद “सीरत में भी कुछ ऐसा बुरा नहीं…” को और ज़ियादा असरदार बना देता है।
नासिर के यहाँ रात बेहद वसीअ है। रात के मुख़्तलिफ़ पहलू उनकी शायरी में मौजूद हैं। कहा जाता है कि वो सारी सारी रात जागते रहते, और जब पौ फटती, परिंदे चहचहाना शुरू करते तब जा कर उनकी आँखों में नींद का कोई निशान नज़र आता।
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