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Let’s count them words!

Different poets might use slightly different distribution of words and word clouds are typically used to convey information about the distribution of words in some specific context. The more a word is used, the bigger it is on the cloud. So, let us make these word clouds for some prominent poets and see if they convey some insight into their commonalities and distinctiveness. 

Milan Kundera - Blog Cover

वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त, जिंसियत और मोहब्बत : मिलान कुंडेरा

वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त कुंडेरा का बेहतरीन, अहम और कई नाविलियाती/ नाविलाती बहसों को पैदा करने वाला नॉवेल माना जाता है। उसके मुताबिक़ इस नॉवेल को जिन बुनियादों या जिन सुतूनों पर लिखा गया है उनमें बोझ, लताफ़त, रूह, जिस्म, ग्रैंड मार्च, किच या किश, गिर जाने की कैफ़ियत, क़ुव्वत और कमज़ोरी शामिल हैं। नॉवेल को पढ़ते हुए हम कई सतहों पर उसके फैलाव को देखते हैं और ये फैलाव वुजूद, जिंस, मोहब्बत, सियासत (प्रेग स्प्रिंग), फ़लसफ़ा, मौसीक़ी, किरदारों की सूरत-ए-हाल पर है और बक़ौल कुंडेरा “बेवफ़ाई, सरहद, मुक़द्दर, लताफ़त, ग़नाइयत; मुझे यूँ लगता है कि एक नॉवेल अक्सर कुछ गुरेज़ाँ इस्तिलाहों को पाने की तवील जुस्तजू के सिवा कुछ नहीं।

Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

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ریختہ کتب خزانہ اور تلاش نغمہ

یہ کسی بیگم ایچ اے نغمہ کی منظوم، درد ناک آپ بیتی تھی۔ اس کتاب میں شامل کچھ نظموں نے مجھے کچھ الجھن میں ڈال دیا اور میں مارے تجسس کے کانپور، لکھنؤ اور ڈھاکا تک پہنچ گئی۔ جی نہیں! مجھے کہیں جانے کی ضرورت نہیں پڑی ریختہ پر موجود کتابو ں میں اس الجھن کا سرا ڈھونڈ رہی ہوں، سفر جاری ہے۔ ذرا رکئے پہلے ایک نظر ’فریاد نغمہ‘ کے سر ورق پر ڈالتے چلیں۔

Munawwar Rana

मुनव्वर राना का आख़िरी मुशायरा

मुनव्वर राना, जिन्होंने गुज़िश्ता रात लखनऊ के पी.जी.आई. अस्पताल में कैंसर के मूज़ी मरज़ में आख़िरी साँस ली, मौजूदा दौर में उर्दू शायरी की आबरू थे। उन्होंने बरस-हा-बरस उर्दू शायरी के दीवानों पर अपना सिक्का चलाया। मुनव्वर राना को जो मक़बूलियत और शोहरत हासिल हुई, वो उनके हम-अस्र शोरा में कम ही लोगों का मुक़द्दर हो सकी।

tarz-e-Bedil mein rekhta kahna- Ghalib’s fondness for Bedil

Ghalib was so influenced by Bedil, that his own poetry tirelessly reflected Bedil’s highly convoluted, Persianized and izaafat-laden style. Even Ghalib’s lofty themes can be loosely ascribed to Bedil’s buland-KHayaalii- sky-high rumination.

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