Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

Ghalib

ग़ालिब के दीवान का दिलचस्प क़िस्सा

ये बात तो तय है के ग़ालिब ख़ुद चाहे क़र्ज़ और ग़रीबी की ज़िन्दगी गुज़ार कर मरा हो, मगर उसने अपने मरने के बाद बहुत से लोगों को अमीर क्या बल्कि रईस बना दिया।

Bhartendu Harishchandra blog

35 साल का जीवन मिला मगर बड़ा काम कर गए

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिंदी अदब की दुनिया में एक हमा-दाँ अदीब के तौर पर बेपनाह शोहरत और मक़बूलियत हासिल है। बेशक भारतेन्दु ने हिंदी अदब में एक लासानी मक़ाम हासिल किया, लेकिन आपका क़लम सिर्फ़ एक मख़सूस ज़बान तक महदूद नहीं रहा। आपने कई दीगर ज़बानों में अपना क़लम चलाया, लेकिन आपकी उर्दू तसानीफ़ वाक़ई क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं।

Is Baarish Ko Hum Kya Likhen? Rain’s Many Names

Rain is truly one of the wonders of nature. From the arrival of the fruit-bearing springtime to the wintery winds of change knocking at our doors, rain is the magic wand swirling behind the seasonal spell.

Waqt ke Paimane

वक़्त के पुराने पैमाने

वक़्त के साथ साथ चीज़ों के पैमाने भी बदलते रहते हैं। इन बदलावों के पीछे ज़रूरत और हालात की तब्दीलीयां कारफ़रमा होती हैं। परिवर्तन समय का विशेष गुण है और इस विशेषता से स्वयं समय भी अलग नहीं रहा है। अतः समय के साथ साथ समय नापने के पैमानों में भी बदलाव आता रहा है। समय को नापने की इंसान को सबसे पहले कब ज़रूरत पड़ी इस बारे में विश्वास से कुछ नहीं कहा जा सकता।

Ghazal aur Nazm

ग़ज़ल बड़ी या नज़्म

नज़्म की बुनियादी शर्त होती है एक ही मौज़ूअ’ को बयान करना लेकिन क्या ग़ज़ल में ऐसा है? नहीं बिल्कुल नहीं। ग़ज़ल के तमाम अशआ’र अपने आप में मुख़्तलिफ़ मौज़ूअ’ पर होते हैं और क़ाबिल-ए-ग़ौर बात यह है कि ग़ज़ल का हर शे’र अपने आप में एक मुकम्मल नज़्म होता है या’नी कोई भी ग़ज़ल कम-अज़-कम पाँच मुख़्तलिफ़ नज़्मों का इज्तिमा’ है, तो फिर नज़्म बड़ी कैसे हुई?

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