Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

फ़िक्र नामा, fikr nama, फ़िक्र तोनस्वी, fikr taunsvi

लुग़ात-ए-फ़िक्री: वो अनूठा ‘शब्दकोश’ जो लफ़्ज़ों का कुछ अलग ही अर्थ बताता है

लुग़ात-ए-फ़िक्री, यानी फ़िक्र तोनस्वी का लिखा गया चंद पन्नों का ‘शब्दकोश’ अपने तौर की बहुत दिलचस्प और मज़ेदार तहरीर है। इसमें फ़िक्र ने हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों के अर्थ समाज की कड़वी हक़ीक़तों से बहुत क़रीब जा कर लिखे हैं। यहाँ लीडर का मतलब सिर्फ़ लीडर या राजनेता नहीं बल्कि वह है जो उसके व्यक्तित्व और उसके कारनामों से तय पाता है।

Revisiting the Royal Recitals

Revisiting The Royal Recitals

Shahi Mushairon Ki Ek Tasveer

These Urdu poetic symposia came to be known as Mushairas in the 18th century before which they were called Murekhta or Majlis-e-Rekhta performed in the Rekhta language, an early form of Urdu language, literally meaning ‘scattered’ or ‘mixed’ because it contained Persian in it.

Jigar Moradabadi

जब जिगर कहते, “मेरा ख़ुदा मुझे शराब पिलाता है, आप कौन होते हैं रोकने वाले”

जिगर के साथ वक़्त गुज़ारने वाले बताते हैं कि शराब की बोतल सिर्फ़ उस वक़्त जिगर के हाथ से छूटती जब वह बेहोशी के आलम में होते। नशा उतरता और फिर पीना शुरू कर देते। जिगर ने शराब की क्वालिटी, हद और पीने के वक़्त के बारे में कभी कुछ नहीं सोचा। वह हर वक़्त, हर तरह की शराब ज़्यादा से ज़्यादा पीना चाहते थे।

यूसुफ़ी: जो उर्दू फ़र्श पर बैठ कर लिखते थे और अंग्रेज़ी कुर्सी पर

भाषा के लिए यूसुफ़ी अपनी पत्नी को अपना गुरु समझते थे। इदरीस बेगम अलीगढ़ की तालीम-ए-याफ़ता थीं और ज़बान शनास थीं। यूसुफ़ी उनसे कहते ‘भाषा के मुआमले में हम तुम्हारी मानते हैं बाक़ी मुआमलों में तुम हमारी मानो।’

Firaq Gorakhpuri

फ़िराक़ गोरखपुरी होने का मतलब

फ़िराक़ गोरखपुरी पिछली सदी के सबसे जीनियस शायर हैं। फ़िराक़ से पहले जीनियस लफ़्ज़ के मुसतहिक़ ग़ालिब नज़र आते हैं। ग़ालिब और फ़िराक़ में एक बात और कॉमन है। वो है इन दोनों की नस्र। अगर आप इन दोनों की नस्र पढ़ें तो थोड़ी देर को ही सही, आपका ईमान इनकी शायरी से हिल जाएगा… continue reading

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