Tag : Khiraj-e-Aqeedat

Dilip Kumar

دلیپ کمار کی زبان ایک عہد کی زبان تھی جو ان کے ساتھ ہی رخصت ہو گئی

فلموں میں مکالمے صاحب طرز انشا پرداز اور بڑے قلمکاروں کے ہوتے ہیں۔ لہجے اور ادائیگی کا ذمہ اداکاروں پر ہوتا ہے۔ اس لیے فلم سے قطع نظر ہماری نظر دلیپ کمار کی اس اردو کی جانب از خود چلی جاتی ہے جو ان کی اپنی اردو کہی جا سکتی ہے جو ان کے قلب میں نمو پاکر دہن شیریں سے پھوٹ پڑتی ہے۔

दिलीप कुमार: एक ज़िन्दगी के भीतर कितनी ज़िन्दगियां…

दिलीप कुमार इकलौते अभिनेता थे कि जब कैमरे की तरफ़ पीठ होती थी तब भी वे अभिनय करते नजर आते थे। फ़िल्म ‘अमर’ में एक दृश्य में मधुबाला उनसे मुख़ातिब हैं और कहती हैं, “सूरत से तो आप भले आदमी मालूम होते हैं…” फ़्रेम में सिर्फ़ उनकी धुंधली सी बांह नज़र आती है मगर संवाद अदायगी के साथ वे जिस तरीक़े से अपनी बांह को झटके से पीछे करते हैं वह उनके संवाद “सीरत में भी कुछ ऐसा बुरा नहीं…” को और ज़ियादा असरदार बना देता है।

Zauq

कौन जाए ‘ज़ौक़’ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर

दिल्ली की गलियों को न छोड़कर जाने वाले इस अज़ीम शायर की दायमी आरामगाह का पता अब चिन्योट बस्ती, मुल्तानी ढाण्डा, पहाड़गंज, नई दिल्ली है जो कि बंटवारे के बाद ग़ैर-तक़सीम पंजाब के चिन्योट और मुल्तान ज़िलों से आकर बसे हिन्दुस्तानियों से आबाद है।

अकबर इलाहाबादी : हिन्दुस्तानी तहज़ीब के समर्थक

अकबर इलाहबादी को अब इस से फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वो इलाहबादी हैं या प्रयागराजी। बात उनकी शायरी की होनी चाहिए और शायरी भी कैसी जो सरासर हिंदुस्तानी है। ये बहस बहुत पुरानी है की साहित्य का मक़सद समाज की भलाई है या साहित्यकार अपने दिल की बात करता है, चाहे उसका कोई अज़ीम मक़सद न भी हो।

Meeraji

कहते हैं कि उन्हों ने अपनी प्रेमिका के नाम पर ही अपना नाम मीरा जी रखा

मीरा जी का असली नाम मोहम्मद सनाउल्लाह ‘सानी’ डार था। लाहौर में विलादत हुई , इनके वालिद का नाम मुंशी महताबउद्दीन था जो रेलवे में मुलाज़मत करते थे और इनकी वालिदा का नाम ज़ैनब बेगम था। इनके वालिद को मुलाज़मत के दौरान कई मुख़्तलिफ़ शह्रों में क़याम करना पड़ता कभी गुजरात के काठियावाड़ ,बलूचिस्तान वग़ैरह वग़ैरह। मीरा जी वालिद के साथ ख़ूब घूमे इसका उनके ज़ेहन पर बहुत गहरा असर पड़ा और छोटी उम्र से ही वो घुमक्कड़ क़िस्म के हो गए थे ।

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