आईना-दर-आईना
आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।
आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।
मोहिनी मीर तक़ी मीर की कई बिल्लियों में से एक बिल्ली थी जो उन्हें बेहद अज़ीज़ थी। मीर का ये रंग शायद लोगों को ज़रा अटपटा लगे, क्योंकि मीर को एक बड़े ही दर्द भरे शायर के तौर पर मशहूर किया गया है, इसकी वुजूहात भी हैं कि मीर की ज़िंदगी और उस वक़्त का माहौल मुश्किलों से भरा था लेकिन एक शाइर ज़िन्दगी को कैसे देखेगा ये उस पर है, वो चाहे तो अमावस की रात में भी तारों के झुरमुट से दिल को रौशन कर ले या चाँद के न होने से दिल में अंधेरा कर ले।
Think, what first comes to your mind as you read a couplet? Its idea, image, eloquence, assonance, or something else? Barely are we drawn towards the sounds that envelope the syllables that we’re uttering.
मीर के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि उन्होंने सह्ल ज़बान या सरल भाषा में शाइरी की है। ऐसी ज़बान जिसे समझने में किसी को कोई परेशानी न हो और ये बात अक्सर ग़ालिब से उनका मवाज़ना/तुलना करते हुए कही जाती है। लेकिन क्या वाक़ई मीर की शाइरी आसान/आसानी से समझ में आ जाने वाली शाइरी है?
अमूमन लोग मुहावरा और कहावत को एक समझते हैं। जब कि ऐसा नहीं है। मुहावरा अरबी ज़बान का लफ़्ज़ है जिसका मतलब मख़्सूस ज़बान में राइज मख़्सूस जुमलों से मुतअल्लिक़ा है, या’नी ऐसे वाक्यांश या शब्द-समूह जिन्हें जैसा का तैसा बोला या लिखा जाता है। जैसे: पानी-पानी होना, टेढ़ी खीर होना, आँख आना, सर पर चढ़ना वग़ैरा।
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