Tag : Mirza Ghalib

Indian Independence Blog

From 1857 to 1947: Towards Our Independence with Urdu Nazms

A part of India’s exquisite literature that has arguably been the closest to common people is Urdu poetry. So much so, that many of the couplets have become like idioms to us. But besides Ghazals and its Shers, Nazms, too are etched in our collective consciousness.

किताबें तन्हा भी करती हैं और तन्हाई से बचाती भी हैं

किताबों से परे ज़िन्दगी का तसव्वुर करना भी तसव्वुर के सिवा और क्या है। बल्कि महसूस करके देखा जाए तो किताबों का एक-एक सफ़्हा न जाने कितनी ज़िन्दगियों से लिपटा हुआ होता है। तन्हाई में घुटता हुआ इंसान किताबों के साथ जीना सीख ले तो फिर वो इस दुनिया का नहीं रह जाता। किताब में तहरीर एक-एक लफ़्ज़ हमसे गुफ़्तगू करता है, एक-एक किरदार किताब से निकल कर हमारे सामने आ कर हमारे साथ जीने लगता है, ये न हुआ तो हम उनके साथ जीने लगते हैं।

Mirza Ghalib Blog

जब कोलकता में ग़ालिब के एक फ़ारसी शेर पर विवाद खड़ा हो गया

एक तो ग़ालिब के जिस्म में दौड़ता ईरानी लहू और दिमाग में ईरानी उस्ताद की नसीहतें और तजर्बे, इन दोनों के मेल ने ग़ालिब को फ़ारसी का ज़बरदस्त और ज़हीन शायर बना दिया। सिर्फ़ शायर ही नहीं बल्कि उनके खाने पीने, उठने बैठनें, बात करने, कपड़े पहनने और सोचने समझने का अंदाज तक ख़ालिस ईरानी हो गया।

Jagjit Singh Blog

जगजीत सिंह: ग़ालिब की आत्मा की तलाश में

जगजीत सिंह का नाम ज़हन में आते ही चेहरे पर आज भी मुस्कुराहट आ जाती है। जगजीत सिंह पिछली सदी की नब्बे वाली दहाई में जवान होती नस्ल के नौस्टेलजिया का एक अहम किरदार है। वो पीढ़ी जिस तरह अपने बचपन में कार्टूनिस्ट प्राण के किरदारों की नई काॅमिक्स की बेतहाशा राह तका करती थी, ठीक उसी शिद्दत से जगजीत सिंह के नई कैसेट्स उस जवान होती पीढ़ी को मुंतज़िर रखते थे।

اردو شاعر مطلب، مرزا غالب

میں نے اپنے ایک اُردو داں اور نکتہ سنج دوست سے پوچھا کہ غالب کون ہے؟ ان کا جواب تھا: ’سوال بظاہر سادہ، لیکن بہت گہرا ہے۔ سادہ اس لیے کہ لوگ اس پر ہنسیں گے کہ آپ کو یہ بھی نہیں معلوم کہ غالب کون ہے اور گہرا اس لیے کہ یہ تو غالب کو بھی نہیں معلوم تھا کہ غالب کون ہے؟

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