Tag : Mirza Ghalib

Mirza Ghalib Film 1954

जब मंटो ने मिर्ज़ा ग़ालिब पर फ़िल्म बनाई और संवाद बेदी ने लिखा

1954 की “मिर्ज़ा ग़ालिब” उन गिने-चुने दरीचों में से है, जो अवाम को माज़ी में झाँकने का मौक़ा बख़्शती है। फ़िल्म के ख़ूबसूरत मुकालमे राजिंदर सिंह बेदी की क़लम से निकले हैं, जो ख़ुद एक मुमताज़ अदीब रहे हैं।

Husn e Jaana Ki Tareef

इन शेरों की तो पेंटिंग्स भी नहीं बनाई जा सकती

महबूब की तारीफ़ करनी हो या मोहब्बत का इज़हार, सबकी पहली पसंद शायरी है, सबकी ज़िन्दगी में एक दौर ऎसा ज़रूर आता है जब ख़ूब शायरी पढ़ी जाती है और लिखने की कोशिशें भी होती हैं, ये दौर अक्सर मोहब्बत या आज की ज़बान में क्रश या पहले पहले प्यार का दौर होता है।

#QissaKahani: वो दिन जिसके बाद नेहरू ने उर्दू सीखने और ग़ालिब को पढ़ने का फ़ैसला किया

QissaKahani रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आपके लिए हर हफ़्ते उर्दू शायरों, अदीबों और उर्दू से वाबस्ता अहम् शख़्सियात के जीवन से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होते हैं। इस सीरीज़ की तीसरी पेशकश में पढ़िए नेहरू के उर्दू सीखने का क़िस्सा।

Lafzon par nigrani rakkho

लफ़्ज़ों पर निगरानी रक्खो

हमारी आम ज़बान में ख़ासतौर से दो लफ़्ज़ ‘ग़लती’ और ‘हरकत’ बहुत मक़बूल और राइज हैं पर शाएरी के हवाले से देखें तो इनका इस्तेमाल हम ग़लत तरीक़े से कर सकते हैं क्यों कि हम इन दोनों ही अल्फ़ाज़ के अस्ल तलफ़्फ़ुज़ से वाक़िफ़ नहीं हैं।

Ameer Minai

अमीर मीनाई: जिनका कलाम उन के नाम से ज़ियादा मशहूर हुआ

अमीर मीनाई एक ऐसे अहम शायर हैं जिन पर बहुत कम बात होती है, चूँकि वो हमारी शेरी रवायत के बड़े शायर हैं और मुआमिला ये है कि उनका कलाम उनसे ज़ियादा मशहूर है। अमीर मीनाई का नाम बहुत लोग नहीं जानते लेकिन उनके अशआर फिर भी लोगों की ज़बाँ पर रहते हैं, मिसाल के तौर पर “ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे”।

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