Tag : Mirza Ghalib

Ghalib and April Fool, April Fool Shayari

“جب غالب کی غزل کے نام پر لوگوں کو اپریل فول بنایا گیا”

ریاست بھوپال اپنی تشکیل کے اولین دور سے ہی اہل علم و ادب کی قدردان رہی ہے خصوصاً نواب صدیق حسن خاں کا دوربھوپال کی علمی وجاہت کا انتہائی سنہرا دور تھا۔ قال اللہ اور قال رسول کے اسباق کے درمیان میر و مصحفی اور غالب و مومن کی شعری عشوہ طرازیوں کے رنگ بھی فضا میں بکھرے ہوئے تھے خصوصاً غالب کے قدردانوں کا ایک وسیع حلقہ یہاں موجود تھا۔یہی وجہ ہے یہاں غالب کی ابتدائی دور کا کلام اس وقت آگیا تھا جب وہ جوانی کی سرحدوں سے گزر رہے تھے ۔

Sir Syed and Ghalib

सर सय्यद और ग़ालिब के बीच की नाराज़गी, जो किताब से शुरू हुई और बोतल पर ख़त्म हुई

सर सय्यद और ग़ालिब के रिश्ते उस किताब से ख़राब हुए थे जिसे सर सय्यद ने सम्पादित किया था और ग़ालिब ने उस किताब के लिए सर सय्यद की ख़ूब आलोचना की थी। लेकिन इसके बाद एक समय वो आया जब दोनों के बीच की दूरियाँ शराब की एक बोतल पर समाप्त हुईं।

हम अपनी कल्पना के सहारे वो सब देखते हैं जो खुली आँखों से नहीं देख सकते

यक़ीन और गुमान दोनों में एक बात मुश्तरक है कि दोनों हमारे ज़ेहन में एक तस्वीर बनाते हैं, और फ़र्क़ ये है कि यक़ीन एक ही तस्वीर बनाता है मगर गुमान की कोई हद नहीं। गुमान की तस्वीरों में यक़ीन की तस्वीर भी हो सकती है मगर यक़ीन की तस्वीर बनती है तो गुमनाम की सारी तस्वीरें मिट जाती हैं।

Sher Unke Geet Hamare

जब शायरों के शेर ज़रा सी तब्दीली के साथ फ़िल्मों में पेश किये गए

उर्दू शायरी में किसी दूसरे शायर के कलाम, शे’र या किसी मिस्रा से मुतअस्सिर हो कर, इसमें कुछ इज़ाफ़ा करके उसको अपना लेने की रिवायत हमेशा रही है जिसे तज़मीन कहते हैं। इसके अलावा तरही मुशायरों में किसी उस्ताद की ग़ज़ल से कोई मिस्रा दिया जाता था यानी ‘मिस्रा-ए-तरह’ और सब शायर इसी ज़मीन में इसी क़ाफ़िए और रदीफ़ के साथ ग़ज़लें कहते थे और इस ‘मिस्रा-ए-तरह’ पर अपने मिस्रे से ‘गिरह’ लगाते थे।

Meer-Aur-Mohsin-Naqvi

जन्नत में शायरों की एक महफ़िल

मैंने सुना है मेरे बाद कोई लफ़्ज़ों का ऐसा साहिर पैदा हुआ है , जिसे इश्क़ ने निकम्मा कर रखा था और ज़माने ने पागल क़रार दे रखा था, कोई ग़ालिब गुज़रा था , क्या था वो शख़्स? उस के बारे में मैं पहले ही कह दिया था कि उस्ताद मिला तो ठीक वर्ना मोहमल बकेगा।

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