ग़ज़ल बड़ी या नज़्म
नज़्म की बुनियादी शर्त होती है एक ही मौज़ूअ’ को बयान करना लेकिन क्या ग़ज़ल में ऐसा है? नहीं बिल्कुल नहीं। ग़ज़ल के तमाम अशआ’र अपने आप में मुख़्तलिफ़ मौज़ूअ’ पर होते हैं और क़ाबिल-ए-ग़ौर बात यह है कि ग़ज़ल का हर शे’र अपने आप में एक मुकम्मल नज़्म होता है या’नी कोई भी ग़ज़ल कम-अज़-कम पाँच मुख़्तलिफ़ नज़्मों का इज्तिमा’ है, तो फिर नज़्म बड़ी कैसे हुई?