दर अस्ल आमद का शेर ही सबसे ज़ियादा वक़्त लेता है
शाइरी करना और शाइरी होना, होने-करने, करने-होने की क्रियाओं में इस तरह गुँथा हुआ है जैसे तरह-तरह के धागे एक-दूसरे से उलझ जाएँ। शाइरी करने वाले के लिए शुरुआत ”शाइरी होने” से होती है और उसकी शाइरी होने के बा’द शाइरी की समझ रखने वाले कहते हैं, तुम अभी शाइरी कर नहीं पा रहे हो।