Tag : Urdu Poetry

Ibn e Insha Blog

इब्न-ए-इंशा और उनका चाँद नगर

चाँद से मुतअल्लिक़ बहुत सारे मुहवारे भी हमारी ज़बान का हिस्सा हैं, मसलन ईद का चाँद होना, चार चाँद लगना वग़ैरह। इसके बावजूद जब मैं चाँद के हवाले से शायरी की बात करता हूँ तो मेरे ज़हन में सिर्फ़ दो नाम नुमायाँ होते हैं – पहला मीर तक़ी मीर और दूसरा इब्न-ए-इंशा।

Naseer Turabi

उनके लिए जो नसीर तुराबी को नहीं जानते!

उर्दू शायरी के आशिक़, नसीर तुराबी के इस दुनिया से रुख़्स्त हो जाने का ग़म मना रहे हैं। दो हज़ार बीस के दिए ज़ख़्म अभी ताज़ा ही थे कि नया साल का पहला अशरा एक और दुख-भरी ख़बर पर ख़त्म हुआ। नसीर तुराबी का जाना अच्छी शायरी के सुनने, पढ़ने और गाने वालों के लिए एक बहुत दुख-भरा वाक़िया है।

Baat-Se-Baat-Chale

बात से बात चले, बकुल देव के साथ एक गुफ़्तगू!

इस सिलसिले के चलते अपने हमअस्रों को और क़रीब से जानने-समझने के मवाक़े तो मयस्सर आएंगे ही, साथ ही साथ गुफ़्तगू के दौरान उर्दू अदब और अदीबों के तख़्लीकी तर्ज़ो तरीक़ के नये पहलू भी सामने निकल कर आएंगे..

Ghalib Kaun Hai

जब मीर ने ग़ालिब के बारे में एक अजीब बात कही

ग़ालिब कौन है, अब हम उससे क्या बताएँ कि जो ग़ालिब ही से पूछ रहा हो कि ग़ालिब कौन है। बहुत ग़ौर करें तो इसी शे’र में ग़ालिब निराश हो कर ये कहते हुए भी नज़र आते हैं कि- ”वो हमसे पूछ रहे हैं कि ग़ालिब कौन है तो कोई हमीं को बतलाओ कि हम क्या बतलाएँ कि हम कौन हैं।

Diwan aur Kulliyat ka farq

दीवान और कुल्लियात का फ़र्क़

दीवान से मुराद किसी शाइर की किसी किताब में ग़ज़लों की ता’दात से नहीं होती। दीवान शाइर की उस किताब को कहते हैं, जिसमें बा-क़ाएदा किताब की पहली ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ अलिफ़ ‘अ’ (ا ) होता है और आख़िरी ग़ज़ल की रदीफ़ का आख़िरी हर्फ़ बड़ी ‘ये’ (ے) होता है।

Twitter Feeds

Facebook Feeds