Delhi Shayari Blog

दिल्ली अपने शाइ’रों की नज़र में

दिल्ली वक़्त जितना ही पुराना शह्र है। इस शह्र के सब से पुराने आसार तक़रीबन 300 क़ब्ल-ए-मसीह के आस-पास के हैं। ये शह्र हमेशा से तहज़ीब, तरक़्क़ी और फ़ुनून-ए-लतीफ़ा का मर्कज़ रहा है। इसी लिए, जब हम तारीख़ के पन्ने पलटते हैं तो पाते हैं कि इस शह्र ने जितने आली-मर्तबत लोगों को अपनी तरफ़ खींचा, उतने ही हम्लावरों को भी। दिल्ली कई-कई बार लुटी। तबाह हुई। लेकिन इस शह्र में कुछ तो बात है कि ये शह्र हर बार अपनी राख से उठा, दोबारा आबाद हुआ और पहले से ज़ियादा रोशनी लुटाई।

आइए, दिल्ली की तारीख़ का एक छोटा सा सफ़र करते हैं, इस के महबूब शाइ’रों के अश्आर के हवाले से।

Mir Taqi Mir Poetry

मीर अपने महबूब शह्र दिल्ली के बारे में कहते हैं, कि दिल्ली की गलियाँ सिर्फ़ गलियाँ न हो कर किसी मुसव्विर की पेंटिंग्स थीं। जो शक्ल वो देखते थे, किसी तस्वीर से कम नहीं थी।

Mir Taqi MIr  Poetry

ये शे’र भी मीर के पहले दीवान का है। मीर को जिन रईस ने वज़ीफ़ा दिया था, वो जंग में मारे गए। यही हालत दिल्ली के सभी रऊसा की थी। जो लोग अपनी शान-ओ-शौकत के लिए शह्र भर में मश्हूर थे, उन्हें अपनी जान के लाले पड़ गए थे। जो लोग कुछ पसंद आने पर उसे ख़रीदने के लिए क़ीमत तक नहीं पूछा करते थे, उन के लिए ज़िंदगी के ज़रूरी सामान ही ख़रीद पाना मुश्किल हो गया था।

Urdu Poetry

मुसहफ़ी अपने महबूब शह्र दिल्ली के उजड़ने पर लखनऊ चले गए, लेकिन दिल्ली की मुहब्बत उन्हें वापिस खींच लाई थी। दिल्ली के हालात बेहद ख़राब होने की वज्ह से उन्हें आख़िर-कार लखनऊ ही में बसना पड़ा। देखिए, इस शे’र में उन्होंने दिल्ली की हालत का बयान किस तरह किया है।

Dilli Poetry

ज़ौक़ की आँखों के सामने ही मुग़लिया दिल्ली की शम्अ थरथराने लगी थी। हालाँकि ग़दर के पहले उन का इंतिक़ाल हो गया था और वो अपने महबूब शह्र की बे-हिसाब तबाही के गवाह बनने से बच गए। जब दिल्ली के ज़ियादा-तर मश्हूर शाइ’र दिल्ली को छोड़ कर लखनऊ और दकन (हैदराबाद) जा रहे थे, ज़ौक़ दिल्ली से अपनी मुहब्बत का इज़हार यूँ करते हैं।

Ghalib about Delhi

ग़ालिब आगरा में पैदा हुए थे लेकिन दिल्ली के हो कर रह गए। उन्होंने दिल्ली को तबाह होते हुए देखा लेकिन कभी इस शह्र को छोड़ कर नहीं गए। फिर भी वो इशारों-इशारों में ये कहने को मज्बूर हो ही गए, कि अगर वो दिल्ली में रहेंगे तो खाएँगे क्या।

Urdu Poetry

बहादुर शाह ज़फ़र न सिर्फ़ शाइ’र थे बल्कि मुग़लिया सल्तनत और दिल्ली के आख़िरी बादशाह भी थे और ग़दर के सरबराह भी। लेकिन इस के वज्ह से उन्हें जिला-वतन कर दिया गया। इस शे’र में ज़फ़र ने अपनी और दिल्ली, दोनों की हालत का बयान कर दिया है।

Hali on Delhi

हाली ग़ालिब के शागिर्द थे। हाली दिल्ली को मरहूम क़रार दे कर इस तरह याद करते हैं जैसे अपने किसी मरहूम अज़ीज़ दोस्त को याद फ़रमा रहे हों। हाली की नज़र में दिल्ली फ़ौत हो चुकी थी, लेकिन क्या कभी इस शह्र ने दम तोड़ा था कि अब तोड़ देता? दिल्ली फिर आबाद हुई। पहले बर्तानिया हुकूमत की दारुल-सल्तनत बनी फिर इसे आज़ाद हिंदोस्तान की दारुल-हुकूमत बनने का एजाज़ हासिल हुआ।

Poetry on Delhi

दिल्ली अब एक मेट्रोपौलिटन शह्र है। अल्वी ने इस शे’र में हर तरक़्क़ी-याफ़्ता शह्र का अलमिया बयान किया है। एक ही शह्र में लाखों लोग आबाद हैं लेकिन एक इंसान दूसरे को पहचानता नहीं।