گم شدہ خواتین ناول نگار
یہ ذکر ہے اس وقت کا جب تقریبا ہر گھر میں عورتیں بہت شوق سے ادبی جرائد، مختلف رسائل اور ڈائجسٹ پڑھا کرتی تھیں۔ ان میں کہانیاں اور ناولس قسط بار چھپتی تھیں۔۔۔ ایک قسط پڑھ کر دوسری کا انتطار بڑی شدت سے کیا جاتا تھا۔
मीर तक़ी मीर, जिन्हें ख़ुदा-ए-सुख़न भी कहा जाता है, उर्दू के सबसे बड़े शा’इर हैं। मीर को ये दर्जा केवल उनकी शा’इरी की वजह से नहीं, ज़बान की इर्तिक़ा में उनके योगदान की वजह से भी हासिल है। शा’इरी का हर रंग उनके यहाँ नुमायाँ मिलता है, और इस लिहाज से वो उर्दू के वाहिद मुकम्मल शा’इर कहे जा सकते हैं।
یہ ذکر ہے اس وقت کا جب تقریبا ہر گھر میں عورتیں بہت شوق سے ادبی جرائد، مختلف رسائل اور ڈائجسٹ پڑھا کرتی تھیں۔ ان میں کہانیاں اور ناولس قسط بار چھپتی تھیں۔۔۔ ایک قسط پڑھ کر دوسری کا انتطار بڑی شدت سے کیا جاتا تھا۔
When we look at the canon of Urdu literature, it doesn’t take much time to realise women are abnormally absent from the picture. If we speak of the classical age, The important Tazkiras like Khush-Marka-e-Zeba or Majmua-e-Naghz rarely mention a female.
2023 marks three hundred years of the legendary poet Meer Taqi Meer. A fresh wave of readers is turning to him, paying tribute to his poetic and linguistic legacy. In this festival of Meer’s life and poetry, a question is being asked more often than any other: Where is Meer’s final resting abode?
किशोरावस्था में ही मिल जाने वाले इश्क़ के सबक़ को लेकर मीर उम्र भर जीते रहे। उनकी ज़िंदगी का कोई काम इश्क़ के शोर और वलवले से ख़ाली नहीं था। उन्होंने न सिर्फ़ पिता से ये नसीहतें सुनी थीं बल्कि इश्क़ में शराबोर उनके जीवन का नज़ारा भी किया था।
उर्दू शायरी में इश्क़ के बारे में ये और ऐसे कई शे’र मशहूर हैं मगर ऐसा नहीं है कि इश्क़ और आशिक़ की बरबादी के क़िस्से सिर्फ़ उर्दू शायरी तक महदूद रह गए हैं। हिंदुस्तान की और ज़बानों और इलाक़ों में भी देखा जाए तो पंजाब की तरफ़ हीर-राँझा, सोहनी-महीवाल, मिर्ज़ा-साहिबा और सस्सी-पुन्नू के क़िस्से हमें ख़ूब मिलते हैं जिन का असर बॉलीवुड में भी बहुत है।
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