उन्होंने हमेशा पाकिस्तानी फ़ौजी तानाशाहों का खुले-आम विरोध किया
अवाम के दर्द को जितना क़रीब से उन्होंने देखा उसे महसूस किया और उसके बारे में लिखा ऐसा उस दौर में बहुत ही कम शायरों ने किया। लोगों ने उन्हें शायर-ए-अवाम का दर्जा भी दिया। वो उस वक़्त के सबसे ज़ियादा पढ़े जाने वाले और मक़बूल शायरों की फ़ेहरिस्त में सबसे आगे थे। हबीब जालिब साहब ने पाकिस्तान में हमेशा मार्शल लॉ की मुख़ालिफ़त की क्योंकि वो जानते थे कि इस ‘लॉ’ में किस तरह से एक आम इंसान के हुक़ूक़ तलफ़ किए जाते हैं। इस सिलसिले में उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ी और जेल भी जाना पड़ा।