Tag : Jaun Elia

हम अपनी कल्पना के सहारे वो सब देखते हैं जो खुली आँखों से नहीं देख सकते

यक़ीन और गुमान दोनों में एक बात मुश्तरक है कि दोनों हमारे ज़ेहन में एक तस्वीर बनाते हैं, और फ़र्क़ ये है कि यक़ीन एक ही तस्वीर बनाता है मगर गुमान की कोई हद नहीं। गुमान की तस्वीरों में यक़ीन की तस्वीर भी हो सकती है मगर यक़ीन की तस्वीर बनती है तो गुमनाम की सारी तस्वीरें मिट जाती हैं।

Meer-Aur-Mohsin-Naqvi

जन्नत में शायरों की एक महफ़िल

मैंने सुना है मेरे बाद कोई लफ़्ज़ों का ऐसा साहिर पैदा हुआ है , जिसे इश्क़ ने निकम्मा कर रखा था और ज़माने ने पागल क़रार दे रखा था, कोई ग़ालिब गुज़रा था , क्या था वो शख़्स? उस के बारे में मैं पहले ही कह दिया था कि उस्ताद मिला तो ठीक वर्ना मोहमल बकेगा।

Mushaira and poets

क्या रहा है मुशायरे में अब

शायरी और अदब के चाहने वाले कभी भी एक ही शायर या अदीब को लेकर नहीं बैठते, ये तो मुमकिन है कि कोई एक अदीब उन्हें ज़ियादा पसंद हो, मगर ऐसा नहीं होता कि वो किसी और को न पढ़ें, मीर के आशिक़ ग़ालिब के भी दीवाने हो सकते हैं, जौन को चाहने वाले फ़ैज़ की नज़्में भी गुनगुनाते हुए मिल जाते हैं।

Husn e Jaana Ki Tareef

इन शेरों की तो पेंटिंग्स भी नहीं बनाई जा सकती

महबूब की तारीफ़ करनी हो या मोहब्बत का इज़हार, सबकी पहली पसंद शायरी है, सबकी ज़िन्दगी में एक दौर ऎसा ज़रूर आता है जब ख़ूब शायरी पढ़ी जाती है और लिखने की कोशिशें भी होती हैं, ये दौर अक्सर मोहब्बत या आज की ज़बान में क्रश या पहले पहले प्यार का दौर होता है।

Zer O Zabar

ज़ेर-ओ-ज़बर ने इश्क़ ही ज़ेर-ओ-ज़बर किया

उर्दू सीखने/ पढ़ने वालों के लिये कभी कभी बड़ा मसअला हो जाता है उर्दू में ऐराब का ज़ाहिर न होना। यानी जैसे हिन्दी में छोटी ‘इ’ की मात्रा या छोटे ‘उ’ की मात्रा होती है, उर्दू में उसके लिये ”ज़बर, ज़ेर, पेश” होते हैं, लेकिन वो लिखते वक़्त ज़ाहिर नहीं किये जाते।

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