Tag : Jigar Moradabadi

हम अपनी कल्पना के सहारे वो सब देखते हैं जो खुली आँखों से नहीं देख सकते

यक़ीन और गुमान दोनों में एक बात मुश्तरक है कि दोनों हमारे ज़ेहन में एक तस्वीर बनाते हैं, और फ़र्क़ ये है कि यक़ीन एक ही तस्वीर बनाता है मगर गुमान की कोई हद नहीं। गुमान की तस्वीरों में यक़ीन की तस्वीर भी हो सकती है मगर यक़ीन की तस्वीर बनती है तो गुमनाम की सारी तस्वीरें मिट जाती हैं।

Mushaira: A History of thunderous and traditional Waah-Waahs

Mushaira (mehfil or bazm) is a gathering of the poets who write, recite and listen to poetry of one another written in Urdu language, with a participative and responsive audience. It is not a contest which has a winner in the end, but the poets simply read out their self-composed poems in their patented and individual styles, crafted in accordance with a specific metrical pattern and carrying a certain loftiness of thought.

Zer O Zabar

ज़ेर-ओ-ज़बर ने इश्क़ ही ज़ेर-ओ-ज़बर किया

उर्दू सीखने/ पढ़ने वालों के लिये कभी कभी बड़ा मसअला हो जाता है उर्दू में ऐराब का ज़ाहिर न होना। यानी जैसे हिन्दी में छोटी ‘इ’ की मात्रा या छोटे ‘उ’ की मात्रा होती है, उर्दू में उसके लिये ”ज़बर, ज़ेर, पेश” होते हैं, लेकिन वो लिखते वक़्त ज़ाहिर नहीं किये जाते।

Jigar Moradabadi

जब जिगर कहते, “मेरा ख़ुदा मुझे शराब पिलाता है, आप कौन होते हैं रोकने वाले”

जिगर के साथ वक़्त गुज़ारने वाले बताते हैं कि शराब की बोतल सिर्फ़ उस वक़्त जिगर के हाथ से छूटती जब वह बेहोशी के आलम में होते। नशा उतरता और फिर पीना शुरू कर देते। जिगर ने शराब की क्वालिटी, हद और पीने के वक़्त के बारे में कभी कुछ नहीं सोचा। वह हर वक़्त, हर तरह की शराब ज़्यादा से ज़्यादा पीना चाहते थे।

Depression Shayari, Shayari in Depression, Shayari to Help Fight Depression

डिप्रेशन में शायरी कैसे काम आती है

शायर कैफ़ भोपाली साहब फ़रमाते हैं – ज़िन्दगी शायद इसी का नाम है,दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाईयाँ ज़िन्दगी हमारे सामने कई रूप और कई रंगों के साथ मौजूद है | आज कुछ ऐसे हालात बनते जा रहे हैं कि कहीं भी कोई उम्मीद की रौशनी नज़र नहीं आती | मुस्तक़बिल किसी ज़र्द दरीचे के उस पार का… continue reading

Twitter Feeds

Facebook Feeds