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Let’s count them words!

Different poets might use slightly different distribution of words and word clouds are typically used to convey information about the distribution of words in some specific context. The more a word is used, the bigger it is on the cloud. So, let us make these word clouds for some prominent poets and see if they convey some insight into their commonalities and distinctiveness. 

Image Shayari, Tasweer shayari

तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है

शायर जलील मानिकपूरी साहब अपनी महबूबा की तस्वीर देखते हुए कहते हैं कि इस तस्वीर में हर अदा अच्छी है, सिवाए इस बात के कि तस्वीर में महबूबा ख़ामोश है। अब ये सभी को पता है कि अपनी तस्वीर में कोई भी शख्स ख़ामोश ही रहेगा, लेकिन फिर भी शायर का बयान लुत्फ़ देता है।

Mir Taqi Mir (interesting Anecdotes)

Mir Taqi Mir And the Mushaira of Lucknow: Interesting Anecdotes

Mir Taqi Mir, aged 60, finally arrived in the court of Lucknow at the request of Nawab Asaf-ud-Daulah in the year 1782. Being a traveller customarily staying in a Sarai Mir, learnt about a Mushaira that was about to take place one evening.

Ameer Minai

अमीर मीनाई: जिनका कलाम उन के नाम से ज़ियादा मशहूर हुआ

अमीर मीनाई एक ऐसे अहम शायर हैं जिन पर बहुत कम बात होती है, चूँकि वो हमारी शेरी रवायत के बड़े शायर हैं और मुआमिला ये है कि उनका कलाम उनसे ज़ियादा मशहूर है। अमीर मीनाई का नाम बहुत लोग नहीं जानते लेकिन उनके अशआर फिर भी लोगों की ज़बाँ पर रहते हैं, मिसाल के तौर पर “ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे”।

Rajinder Manchanda Bani

बानी: वो शायर जिसके यहाँ लफ़्ज़ तस्वीर में बदल जाते हैं

बानी का 1932 में मुल्तान जिले में हुआ था और हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद 1947 में दिल्ली चले आए। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। बानी की ग़ज़लों से गुज़रते हुए आप उनकी मन्ज़र पैदा करने के हुनर के बारे में जानेंगे और आपको यक़ीन हो जाएगा कि वह एक शानदार मुसव्विरी की सलाहियत रखने वाले शायर थे।

Achchi Shayari Kya Hoti Hai (2)

अच्छी शायरी क्या होती है (2)

शायरी बिल-ख़ुसूस ग़ज़ल की शायरी इशारों कनायों और तशबीह का फ़न है इसका अहम ज़ेवर इस्तिआरे हैं। इस्तिआरे का मानी उधार लेना है, यानी हम किसी लफ़्ज़ का मफ़हूम किसी दूसरे लफ़्ज़ से लेते हैं, तो वो इस्तिआरा कहलाता है, जैसे ‘सफ़र’ ज़िन्दगी का इस्तिआरा है, ‘दरिया’ वक़्त का इस्तिआरा है क्योंकि वक़्त की तरह आगे बढ़ता रहता है।

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