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Let’s count them words!

Different poets might use slightly different distribution of words and word clouds are typically used to convey information about the distribution of words in some specific context. The more a word is used, the bigger it is on the cloud. So, let us make these word clouds for some prominent poets and see if they convey some insight into their commonalities and distinctiveness. 

Phir Chhidi Baat Phoolon Ki

फिर छिड़ी बात फूलों की

उर्दू शायरी में फूलों का ख़ास मक़ाम रहा है, दर अस्ल फूल हर ज़बान के अदब में अपना ख़ास मक़ाम रखते हैं। जैसे एक फूल होता है जिसे बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ कहते हैं, इसी फूल को क्रेन फ़्लावर यानी सारस फूल भी कहते हैं, वज्ह बनावट से ज़ाहिर है। अब फ़र्ज़ कीजिये कि इस फूल… continue reading

Hasrat Mohani

स्वतंत्रता आंदोलन: जब दुबले-पतले हसरत जेल में चक्की पीसने पर लगा दिए गए

आज़ाद मुलक के अपने ख़्वाब के लिए हसरत मोहानी ने बेशुमार मुसीबतें और मुश्किलें बर्दाश्त कीं, जिस्मानी यातनायें झेलीं और ज़िंदगी के कई बरस जेल में गुज़ारे। उनका दिया हुआ नारा ‘इन्क़िलाब ज़िंदाबाद’ अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष का प्रतीक बना। हसरत आज़ाद मुल्क में सविधान सभा के सदस्य भी रहे।

Mohammed Rafi

मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ – दुनिया की पैदाइश का नग़्मा!

हमारे बहुत से निहायत संजीदा और गंभीर अदब के आसमान पर फ़ाएज़ अदबी नक़्क़ाद मेरी इस बात पर यक़ीनन नाक भौं सुकेड़ेंगे कि मेरे अदबी शऊर और शेरी जमालियात की तश्कील और परवरिश में मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने माँ की कोख जैसा किरदार अदा किया है। 1960 की दहाई के अवाइल में जब मेरी… continue reading

Riyaz Khairabadi

वो शायर जिसने कभी शराब नहीं पी लेकिन सारी ज़िंदगी शराब पर शेर कहता रहा

रियाज़ ख़ैराबादी के तआरुफ़ में सबसे ज़ियादा कही और सुनी जाने वाली बात ये है कि उन्होंने कभी शराब नहीं पी लेकिन शराब पर सबसे ज़ियादा और सबसे अच्छे शेर कहे। पहली बात पर यक़ीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन दूसरी बात पूरी तरह दुरुस्त है। उर्दू के साहित्यिक इतिहास में रियाज़… continue reading

Fahmeeda Riyaz

फ़हमीदा रियाज़: जिनके शब्द ‘सभ्य समाज’ को तीर की तरह चुभते थे

फ़हमीदा रियाज़ का शुमार उर्दू की उन गिनी-चुनी महिला कवियों में किया जाता है जो ज़िंदगी-भर अपनी शायरी को हथियार बना कर समाज की दक़यानूसी सोच और औरत के बारे में उसके ज़ालिमाना रवैय्ये के ख़िलाफ़ लड़ती रहीं। 1967 में अपने पहले काव्य संग्रह ‘पत्थर की ज़बान’ की इशाअत से लेकर 2018 में हुए अपने… continue reading

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