क्या ग़ालिब के शेरों में आए ये लफ़्ज़ आपको भी मुश्किल में डालते हैं?
अच्छी शायरी का मुआमला ज़रा अलग क़िस्म का होता है, इसमें लफ़्ज़ों के परे एक ऐसी दुनिया होती है कि अगर आप उस तक पहुंचने से असमर्थ रहे तो शायरी के असल आनंद से वंचित रहेंगे।
अच्छी शायरी का मुआमला ज़रा अलग क़िस्म का होता है, इसमें लफ़्ज़ों के परे एक ऐसी दुनिया होती है कि अगर आप उस तक पहुंचने से असमर्थ रहे तो शायरी के असल आनंद से वंचित रहेंगे।
आँखें वैसे तो शरीर के दूसरे अंगों की तरह एकअंग ही हैं जिनके द्वारा हम संसार को देखते हैं और उसके दृश्यों से सम्बंध स्थापित करते हैं, लेकिन हमारी ज़िंदगी में इनकी अहमियत शरीर के दुसरे अंगों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही रही है. अदब व शायरी में भी आँखों के इर्द-गिर्द नये नये मज़ामीन बाँधे गये हैं, उनके सौन्दर्य की प्रशंसा की गयी है
Sahir was passionate about life, as he was about love. Some of his lady-loves were illusory; others were real but in both he remained a deeply aspirational character.
मोहम्मद क़यामुद्दीन ‘क़ाएम’ चाँदपुरी अठारहवीं सदी के मुम्ताज़ शाइ’रों में शामिल हैं। ‘क़ाएम’ चाँदपुरी की पैदाइश तक़रीबन 1725 में क़स्बा चाँदपुर, ज़िला बिजनौर के क़रीब ‘महदूद’ नाम के एक गाँव में हुई थी। लेकिन वो बचपन से दिल्ली में आ रहे और 1755 तक शाही मुलाज़मत के सिलसिले से दिल्ली में ही रहे।
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