Tag : Urdu Shayari

Hai Munir teri nigaah mein koyi baat gehrey malaal ki

Hai Munir Teri Nigaah Mein Koi Baat Gehre Malaal Ki

Niyazi may be read as a poet of memories and reveries, fictions and fancies who drew upon them as his basic material. He was a poet of soft notes, audible whispers, and intimate expostulations. His disputes and dissents with life and time are firm, his diction is polite, and his tones of voice echo in hearts rather than heads.

Jigar Moradabadi

जिगर मुरादाबादी की शायरी हुस्न और मोहब्बत के इर्द गिर्द घूमती है

जिगर मुरादाबादी उन चन्द सोच बदलने वाले शायरों में शामिल हैं, जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी। उसे नए लहजे और नए रंग से चमकाया भी। जिगर साहिब ने उर्दू शायरी को और कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन जिगर साहब उर्दू शायरी का वो पहला नाम हैं जिन्हें किताब और स्टेज पर एक जैसी मक़बूलियत ही नहीं महबूबियत भी हासिल हुई।

Ghalib and April Fool, April Fool Shayari

“جب غالب کی غزل کے نام پر لوگوں کو اپریل فول بنایا گیا”

ریاست بھوپال اپنی تشکیل کے اولین دور سے ہی اہل علم و ادب کی قدردان رہی ہے خصوصاً نواب صدیق حسن خاں کا دوربھوپال کی علمی وجاہت کا انتہائی سنہرا دور تھا۔ قال اللہ اور قال رسول کے اسباق کے درمیان میر و مصحفی اور غالب و مومن کی شعری عشوہ طرازیوں کے رنگ بھی فضا میں بکھرے ہوئے تھے خصوصاً غالب کے قدردانوں کا ایک وسیع حلقہ یہاں موجود تھا۔یہی وجہ ہے یہاں غالب کی ابتدائی دور کا کلام اس وقت آگیا تھا جب وہ جوانی کی سرحدوں سے گزر رہے تھے ۔

क्या हुआ जब एक बार होली और मुहर्रम एक ही महीने में पड़ गए

लखनऊ की होली के क्या कहने साहब! होली क्या है हिन्दुस्तान की कौमी यकजहती की आबरू है। जो ये मानते हैं कि होली सिर्फ़ हिंदुओं का त्योहार है वो होली के दिन पुराने लखनऊ के किसी भी मोहल्ले में जाकर देख लें,पहचानना मुश्किल हो जाएगा रंग में डूबा कौन सा चेहरा हिंदू है कौन सा मुसलमान।

Habib Jalib Blog

उन्होंने हमेशा पाकिस्तानी फ़ौजी तानाशाहों का खुले-आम विरोध किया

अवाम के दर्द को जितना क़रीब से उन्होंने देखा उसे महसूस किया और उसके बारे में लिखा ऐसा उस दौर में बहुत ही कम शायरों ने किया। लोगों ने उन्हें शायर-ए-अवाम का दर्जा भी दिया। वो उस वक़्त के सबसे ज़ियादा पढ़े जाने वाले और मक़बूल शायरों की फ़ेहरिस्त में सबसे आगे थे। हबीब जालिब साहब ने पाकिस्तान में हमेशा मार्शल लॉ की मुख़ालिफ़त की क्योंकि वो जानते थे कि इस ‘लॉ’ में किस तरह से एक आम इंसान के हुक़ूक़ तलफ़ किए जाते हैं। इस सिलसिले में उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ी और जेल भी जाना पड़ा।

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