ज़बान के भी पैर होते हैं
उर्दू के सबसे बलन्द क़िले लखनऊ और दिल्ली में तामीर हुए। हिन्दवी के बाद यह दो शक्लों में तब्दील हुई जिनमें से एक हिन्दी के नाम से जानी गई जिसकी लिपि संस्कृत की लिपि यानी देवनागरी है और दूसरी उर्दू जिसकी लिपि फ़ारसी की लिपि है जिसे नस्तालीक़ कहा जाता है। उर्दू के हक़ में मैं इससे मुफ़ीद जुमला कुछ नहीं समझता कि उर्दू आम आदमी की ज़बान है। और आम आदमी के करोड़ों चेहरे करोड़ों मुँह हैं और जितने मुँह उतनी बातें।