आईना-दर-आईना
आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।
मीर तक़ी मीर, जिन्हें ख़ुदा-ए-सुख़न भी कहा जाता है, उर्दू के सबसे बड़े शा’इर हैं। मीर को ये दर्जा केवल उनकी शा’इरी की वजह से नहीं, ज़बान की इर्तिक़ा में उनके योगदान की वजह से भी हासिल है। शा’इरी का हर रंग उनके यहाँ नुमायाँ मिलता है, और इस लिहाज से वो उर्दू के वाहिद मुकम्मल शा’इर कहे जा सकते हैं।
आईने ने शाइरों का काम बहुत आसान बनाया, इतना आसान कि उस पर हज़ारों शेर कहे गए और अब नए शोरा आईने पर शेर कहते हुए या तो नए ज़ाविए तलाश करते हैं, या इस इस्तिआरे से ही गुरेज़ करते नज़र आते हैं।
A part of India’s exquisite literature that has arguably been the closest to common people is Urdu poetry. So much so, that many of the couplets have become like idioms to us. But besides Ghazals and its Shers, Nazms, too are etched in our collective consciousness.
یوگ ایک روحانی و جسمانی پریکٹس ہے جو خالص ہندوستان کی پیداوار ہے۔ یہ تصوف کی ایک خاص اصطلاح مراقبہ کے مماثل ہے۔ ہندوستان کی قدیم ترین اور کلاسکی زبان سنسکرت میں یوگا کا مطلب ‘نظم و ضبط’ ہے۔ یوگا کی جڑیں ہندو مذہبی روایات میں پیوست ہیں۔ اپنی کئی خصوصیات کی بنا پر آج دنیا بھر میں یوگا کی مقبولیت میں اضافہ ہورہا ہے۔
हम जैसों की ये कैसी मजबूरी है कि हम अपनी ख़ुशी या ग़म सिर्फ़ और सिर्फ़ शेरों में ढूंढते है। शायद हमारे पास और कोई तरीक़ा ही नहीं। ये अलग बात की आस-पास, दूर या नज़दीक तक कोई शाइरी वाला है ही नहीं। मगर कुछ शेर ऐसे भी होते है जो आपके सामने वो मंज़र याद दिला देते है जिसे आप बरसों से भूलने की कोशिश में होते है।
प्रोफेसर गोपीचंद नारंग साहब का जाना किसी बड़ी शख़्सियत के जाने से ज़्यादा बड़ा सानिहा इसलिए है कि गोपीचंद नारंग सिर्फ़ बड़ी शख्सियत नहीं थे बल्कि वो जिस तहज़ीब के अलम-बरदार थे वो उनके साथ चली गई है। वो तहज़ीब बहुत तेज़ी से ख़त्म होती जा रही है। वो तहज़ीब सिर्फ उर्दू ज़बान की तहज़ीब नहीं है बल्कि हिंदुस्तान की हर ज़बान की तहज़ीब है।
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