लाल क़िला फ़िल्म आज भी हमें अपने असर में रक्खे हुए है
ख़ूबसूरत मुकालिमों से आरास्ता 1960 में मंज़र-ए-आम पर आयी फ़िल्म “लाल क़िला” सिर्फ़ लाल क़िले और हिन्दोस्तान के आख़िरी ताजदार बहादुर शाह ज़फ़र की कहानी नहीं है, बल्कि उस शरारे की कहानी है जो ज़ुल्म और इस्तेहसाल की हवा पा कर 1857 में एक शोले की शक्ल इख़्तियार कर गया।