मैहर : जहाँ अतीत मौजूदा वक़्त के साथ-साथ चलता है
मेरे लिए मैहर आना दरअसल मेरे बचपन के नास्टेल्जिया से जुड़ा था। बहुत साल पहले की बात है। तब मैं नौ बरस की उम्र में पिता के साथ उस पहाड़ की पथरीली ऊँची-नीची सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर तक पहुँचा था। माँ पीछे छूट गई थीं। ऊँचाई पर तेज हवा चल रही थी और मेरे कपड़े फड़फड़ा रहे थे। तब पिता के साथ मैंने ऊपर रेलिंग से झाँका था।