Shariq Kaifi

मामूली चीज़ों को ग़ैर-मामूली बना देने वाला शाइर

अगरचे ये शाइरी क्लासिकी उर्दू शाइरी के रिवायती साँचे से बहुत मेल खाती हुई नज़र नहीं आती, लेकिन ये हम-अस्र इंसानी तज्रबात और नफ़्सियात की गहरी तहों को खंगालने में रिवायत और जिद्दत के हर टूल के सहारे से अपना काम करती है। उनकी ग़ज़ल महज़ तख़लीक़ी सलाहियतों के इज़हार का अमल नहीं बल्कि किसी नादीदा-ओ-नायाब नुक्ते की तलाश, समाजी हक़ीक़तों के बयान और इंसानी वुजूद की पेचीदा तहों को बे-नक़ाब करने का ज़रीआ है।

पण्डित दत्तात्रिया कैफ़ी और बे-दख़्ल किये गए शब्दों की कहानी

मतरूकात दरअस्ल उन अल्फ़ाज़ को कहते हैं जिन्हें शाइरी में पहले बग़ैर किसी पाबन्दी के इस्ते’माल किया जाता था मगर बाद में मशाहीर और असातेज़ा ने उनका इस्ते’माल या तो बंद कर दिया या इस्ते’माल रवा रक्खा भी तो कुछ पाबंदियों के साथ रवा रखा। ये भी रहा है कि कुछ अल्फ़ाज़ शाइरी के लिए तो मतरूक हुए मगर नस्र में उनके इस्ते’माल को नहीं छेड़ा गया।

Guru Nanak Books Jayanti Blog

بابا نانک شاہ گرو

'ہند کو اک 'مرد کامل' نے جگایا خواب سے'

بابا نانک جی کا پیغام ہمارے لئے صرف ذاتی حیثیت ہی سے نہیں بلکہ جماعتی لحاظ سے بھی بہت ضروری اور قابل  قدر ہے۔ اس دیس میں جہاں ہزاروں برس سے مختلف مذہبوں کے ماننے والے بستے ہیں ابھی تک باہمی مفاہمت اور رواداری اور یکتا کی وہ روح، وہ فضا پیدا نہیں ہوسکی ہے جو ہر قسم کی مادی اور اخلاقی ترقی کے لئے پہلی شرط ہے۔

Bahadur Shah Zafar Blog

Bahadur Shah Zafar: The emperor poet of Delhi

Bahadur Shah Zafar was born on October 14, 1775, in the last quarter of the eighteenth century. The empire was on the decline. Bahadur Shah Zafar ascended the throne of Delhi, as a symbolic king. His territory of the reign was limited to the Red Fort itself.

Delhi Shayari Blog

दिल्ली अपने शाइ’रों की नज़र में

दिल्ली वक़्त जितना ही पुराना शह्र है। इस शह्र के सब से पुराने आसार तक़रीबन 300 क़ब्ल-ए-मसीह के आस-पास के हैं। ये शह्र हमेशा से तहज़ीब, तरक़्क़ी और फ़ुनून-ए-लतीफ़ा का मर्कज़ रहा है। इसी लिए, जब हम तारीख़ के पन्ने पलटते हैं तो पाते हैं कि इस शह्र ने जितने आली-मर्तबत लोगों को अपनी तरफ़ खींचा, उतने ही हम्लावरों को भी।

Majaz Blog

एक सच, एक अफ़साना : असरारुल-हक़ ‘मजाज़’

मजाज़ या’नी वो असरार जिन्हें दुनिया आज उस की मौत के 67 साल बा’द भी समझने की कोशिश में मुब्तला है। जिस के इ’श्क़, जुनून, मुहब्बत, हाज़िर-जवाबी, मयनोशी, और मौत के इर्द-गिर्द इतने क़िस्से सुने-सुनाए गए हैं कि उन में कौन सा सच और कौन सा अफ़्वाह है, फ़र्क़ करना मुश्किल है।

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