Imroz the poet

इमरोज़-एक जश्न अपने रंग, अपनी रौशनी का

इमरोज़ की मिट्टी का गुदाज़, लोच और लचक देखकर हैरत होती है कि कोई इतना सहज भी हो सकता है। लोग जो भी बातें करते रहें, वो दर-अस्ल इमरोज़ को अमृता के चश्मे के थ्रू देख रहे होते हैं जबकि इमरोज़ किसी भी परछाईं से अलग अपने वजूद, अपने मर्कज़ से मुकम्मल तौर पर जुड़े रहे हैं।

#QissaKahani: वो दिन जिसके बाद नेहरू ने उर्दू सीखने और ग़ालिब को पढ़ने का फ़ैसला किया

QissaKahani रेख़्ता ब्लॉग की नई सीरीज़ है, जिसमें हम आपके लिए हर हफ़्ते उर्दू शायरों, अदीबों और उर्दू से वाबस्ता अहम् शख़्सियात के जीवन से जुड़े दिलचस्प क़िस्से लेकर हाज़िर होते हैं। इस सीरीज़ की तीसरी पेशकश में पढ़िए नेहरू के उर्दू सीखने का क़िस्सा।

Zer O Zabar

ज़ेर-ओ-ज़बर ने इश्क़ ही ज़ेर-ओ-ज़बर किया

उर्दू सीखने/ पढ़ने वालों के लिये कभी कभी बड़ा मसअला हो जाता है उर्दू में ऐराब का ज़ाहिर न होना। यानी जैसे हिन्दी में छोटी ‘इ’ की मात्रा या छोटे ‘उ’ की मात्रा होती है, उर्दू में उसके लिये ”ज़बर, ज़ेर, पेश” होते हैं, लेकिन वो लिखते वक़्त ज़ाहिर नहीं किये जाते।

Sikkon ki Kahani aur Muhavare

سِکّوں کی کہانی اور ہمارے محاورے

آج کل ایک روپیے کا جو سکہ چلن میں ہے، وہ کئی مرحلوں سے گزر کر اس مقام تک پہنچا ہے۔روپیے کا سکہ سب سے پہلے شیر شاہ سوری نے اپنے دورِ حکومت میں 1540ء اور 1545ء کے بیچ جاری کیا۔

Sher Mein Ek Lafz Ki Kahani

शेर में एक लफ़्ज़ की हैसियत

अच्छा शेर कहने से पहले हमें कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। अव्वल तो यह कि हमारा ख़याल यानी शेर का मौज़ूअ क्या है, और हम उसे पेश कैसे कर रहे हैं? शेर का मतलब होता है ”कोई एक बात, कोई एक मौज़ूअ दो मिसरों में कहना न कि दो मुख़्तलिफ़ मौज़ूअ दो मिसरों में कहना।

Lafz, Alfaz

आख़िर लफ़्ज़ कहाँ सुकून का साँस लेते हैं?

हाँ तो हम बात कर रहे थे ग़लती और हरकत और निगरानी जैसे अल्फ़ाज़ की। क्या आपने कभी सोचा कि आम तलफ़्फ़ुज़ में ऐसा होता ही क्यों है कि ग़लती को ग़ल्ती, हरकत को हर्कत बोला जाता है?? ये क्या सिर्फ़ तलफ़्फ़ुज़ के न पता होने का मुआमला है या इसमें कोई अरूज़ या’नी छंदशास्त्र से जुड़ी हुई बात भी है जो बराबर काम कर रही है??

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